Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 184
________________ परिशिष्ट १ १७१ कम्मेयरभूमिसमुब्भवाइभेएणऽणेगहा मणुया। ताण विचिंतसु जइ अत्थि किं पि परमत्थओ सोक्ख॥२५१॥ गब्भे बालत्तणयम्मि जोव्वणे तह य वुड्ढभावम्मि। चिंतसु ताण सरूवं, निउणं चउसु वि अवत्थासु॥२५२॥ मोहनिवनिबिडबद्धो, कत्तो वि हु कड्ढिउं असुइगब्भे। चोरो व्व चारयगिहे, खिप्पइ जीवो अणप्पवसो॥२५३॥ सुक्कं पिउणो माऊए सोणियं तदुभयं पि संसट्ठ। तप्पढमयाएँ जीवो, आहारइ तत्थ उप्पन्नो॥२५४॥ सत्ताहं कललं होइ, सत्ताहं होइ अब्बयं। अब्बया जायए पेसी, पेसीओ य घणं भवे॥२५५॥ होइ पलं करिसूणं, पढमे मासम्मि बीयए पेसी। होइ घणा तइए उण, माऊए दोहलं जणइ॥२५६॥ जणणीए अंगाई, पीडेइ चउत्थयम्मि मासम्मि। करचरणसिरंकूरा, पंचमए पंच जायंति॥२५७॥ छट्ठम्मि पित्तसोणियमुवचिणेइ सत्तमम्मि पुण मासे। पेसिं पंचसयगणं, कुणइ सिराणं च सत्तसए॥२५८॥ नव चेव य धमणीओ, नवनउई लक्ख रोमकवाणं। अद्भुट्ठा कोडीओ, समं पुणो केसमंसूहि।।२५९॥ निप्फन्नप्पाओ पुण, जायइ सो अट्ठम्मि मासम्मि। ओयाहाराईहि य, कुणइ सरीरं समग्गं पि॥२६०॥ दुन्नि अहोरत्तसए, संपुण्णे सत्तसत्तरी चेव। गब्भगओ वसइ जिओ, अद्धमहोरत्तमन्नं च॥२६१॥ उक्कोसं नवलक्खा, जीवा जायंति एगगब्भम्मि। उक्कोसेण नवण्हं, सयाण जायइ सओ एक्को॥२६२॥ गब्भाउ वि काऊणं, संगामाईणि गरुयपावाइं। वच्चंति के वि नरयं, अन्ने उण जंति सुरलोयं॥२६३॥ नवलक्खाण वि मज्झे, जायइ एगस्स दुण्ह व समत्ती। सेसा पुण एमेव य, विलयं वच्चंति तत्थेव॥२६४॥

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