Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 196
________________ परिशिष्ट १ १८३ असुइमलपत्थछक्कं, कुलओ कुलओ य पित्तसिंभाणं। सुक्कस्स अद्धकुलओ, दुटुं हीणाहियं होज्जा॥४१९॥ एक्कारस इत्थीए, नव सोयाइं तु होति पुरिसस्स। इय किं सुइत्तणं अट्ठिमंसमलरुहिरसंघाए ?॥४२०॥ को कायसुणयभक्खे, किमिकुलवासे य वाहिखित्ते या देहम्मि मच्चुविहुरे, सुसाणठाणे य पडिबंधो ?॥४२१॥ वत्थाहारविलेवणतंबोलाईणि पवरदव्वाणि। होंति खणेण वि असुईणि देहसंबंधपत्ताणि॥४२२॥ असुहाणि वि जलकोद्दववत्थप्पमुहाणि सयलवत्थूणि। सक्कारवसेण सुहाइ होंति कत्थइ खणद्धेण।।४२३॥ इय खणपरियत्तंते, पोग्गलनिवहे तमेव इह वत्थु। मन्नामि सुइं पवरं, जं जिणधम्मम्मि उवयरइ॥४२४॥ तो मुत्तूण दुगुंछं, उम्मायकरं कयंबविप्प व्व। देहं च बज्झवत्थु, च कुणह उवयारयं धम्मे॥४२५॥ चउदसरज्जू उड्ढायओ इमो वित्थरेण पुण लोगो। कत्थइ रज्जं कत्थ वि, य दोन्नि जा सत्त रज्जओ॥४२६॥ निरयावाससुरालयअसंखदीवोदहीहिं कलियस्स। तस्स सहावं चिंतेज्ज धम्मज्झाणत्थमुवउत्तो॥४२७॥ अहवा लोगसभावं, भावेज्ज भवंतरम्मि मरिऊण। जणणी वि हवइ धूया, धूया वि हु गेहिणी होइ॥४२८॥ पुत्तो जणओ जणओ, वि नियसुओ बंधुणो वि होति रिऊ। अरिणो वि बंधुभावं, पावंति अणंतसो लोए॥४२९॥ पियपुत्तस्स वि जणणी, खायइ मंसाइं भवपरावत्ते। जह तस्स सकोसलमणिवरस्स लोयम्मि कट्टमहो॥४३०॥ केवलदुहनिम्मविए, पडिओ संसारसायरे जीवो। जं अणुहवइ किलेसं, तं आसवहेउयं सव्वं॥४३१॥ रागद्दोसकसाया, पंच पसिद्धाइं इंदियाइं च। हिंसालियाइयाणि य, आसवदाराई कम्मस्स॥४३२॥

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