Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 195
________________ १८२ भवभावना बीयं सुक्कं तह सोणियं च ठाणं तु जणणिगब्भम्मि। ओयं तु उवटुंभस्स कारणं तस्सरूवं तु॥४०५॥ अट्ठारस पिट्ठिकरंडयस्स संधीओ होंति देहम्मि। बारस पंसुलियकरंडया इहं तह छ पंसुलिए॥४०६॥ होइ कडाहे सत्तंगुलाइं जीहा पलाइं पुण चउरो। अच्छीओ दो पलाइ, सिरं च भणियं चउकवाल।।४०७॥ अछुट्टपलं हिययं, बत्तीसं दसणअट्ठिखंडाइं। कालेज्जयं तु समए, पणवीस पलाइं निद्दिट्ठ।।४०८॥ अंताइ दोन्नि इहइं, पत्तेयं पंच पंच वामाओ। सट्ठसयं संधीणं, मम्माण सयं तु सत्तहियं॥४०९॥ सट्ठसयं तु सिराणं, नाभिप्पभवाण सिरमुवगयाणं। रसहरणिनामधिज्जाण जाणऽणुग्गहविघाएसु॥४१०॥ सुइ चक्खुघाणजीहाणऽणुग्गहो होइ तह विघाओ य। सट्ठसयं अन्नाण वि, सिराणऽहोगामिणीण तहा॥४११॥ पायतलमुवगयाणं, जंघाबलकारिणीणीणुवग्घाए। उवघाए सिरि वियणं, कणंति अंधत्तणं च तहा॥४१२॥ अवराण गुदपविट्ठाण होइ सह्र सयं तह सिराणं। जाण बलेण पवत्तइ, वाऊ मुत्तं पुरीसं च॥४१३॥ अरिसाउ पंडुरोगा, वेगनिरोहो य ताणमुवघाए। तिरियगमाण सिराणं, सट्ठसयं होइ अवराणं।।४१४॥ बाहुबलकारिणीओ, उवघाए कुच्छिउयरवियणाओ। कव्वंति तहऽन्नाओ, पणवीसं सिंभधरणीओ॥४१५॥ तह पित्तधारिणीओ, पणवीसं दस य सुक्कधरणीओ। इय सत्त सिरसयाई, नाभिप्पभवाइं परिसस्स॥४१६॥ तीसूणाई इत्थीण वीसहीणाइं होंति संढस्स। नव पहारूण सयाइ, नव धमणीओ य देहम्मि॥४१७॥ मुत्तस्स सोणियस्स य, पत्तेयं आढयं वसाए उ। अद्धाढयं भणंती, पत्थं मत्थुलयवत्थुस्स॥४१८॥

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