Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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१८६
भवभावना
जम्मं पि ताण थुणिमो, हिमं व विप्फुरियझाणजलणम्मि। तारुण्णभरे मयणो, जाण सरीरम्मि वि विलीणो॥४६१॥ जे पत्ता लीलाए, कसायमयरालयस्स परतीरं। ताण सिवरयणदीवंगमाण भदं मुणिंदाणं॥४६२॥ पणमामि ताण पयपंकयाइं धणखंदपमुहसाहूणं। मोहसुहडाहिमाणो, लीलाए नियत्तिओ जेहिं॥४६३॥ इय एवमाइउत्तमगुणरयणाहरणभूसियंगाणं। धीरपुरिसाण नमिमो, तियलोयनमंसणिज्जाणं॥४६४॥ भवरन्नम्मि अणंते, कुमग्गसयभोलिएण कहकह वि। जिणसासणसुगइपहो, पुन्नेहिं मए समणुपत्तो॥४६५॥ आसन्ने परमपए, पावेयव्वम्मि सयलकल्लाणे। जीवो जिणिंदभणियं, पडिवज्जइ भावओ धम्म॥४६६॥ मणुयत्तखित्तमाईहि विविहहेऊहिं लब्भए सो य। समए य अइदुलंभं, भणियं मणुयत्तणाईयं॥४६७॥ माणुस्सखेत्त जाई, कुलरूवारोग्ग आउयं बुद्धी। सवणोवग्गह सद्धा, संजमो य लोयम्मि दुलहाइं॥४६८॥ अवरदिसाए जलहिस्स कोइ देवो खिवेज्ज किर समिल। पुव्वदिसाए उ जुगं, तो दुलहो ताण संजोगो॥४६९॥ अवि जलहिमहाकल्लोलपेल्लिया सा लभेज्ज जुगछिड्डं। मणुयत्तणं तु दुलहं, पुणो वि जीवाणऽउन्नाणं॥४७०॥ खित्ताईणि वि एवं, दुलहाई वण्णियाई समयम्मि। ताई पि हु(पडि) लणं, पमाइयं जेण(हिं) जिणधम्मे।।४७१॥ सो झूरइ मच्चुजरावाहिमहापावसेन्नपडिरुद्धो। तायारमपेच्छंतो, नियकम्मविडंबिओ जीवो॥४७२॥ आलस्समोहऽवन्ना, थंभा कोहा पमायकिविणत्ता। भयसोगा अन्नाणा, वक्खेव कुऊहला रमणा॥४७३॥ एएहि कारणेहिं, लभ्रूण सुदुल्लहं पि मणुयत्तं। न लहइ सुइं हियकरिं, संसारुत्तारणिं जीवो॥४७४॥

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