Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 201
________________ १८८ निययमणोरहपायवफलाई जइ जीव ! वंछसि सुहाई । तो तं चिय परिसिंचसु, निच्चं सद्धम्मसलिलेहिं॥४८९॥ जइ धम्मामयपाणं, मुहाए पावेसि साहुमूलम्मि। ता दविणेण किउं, विसयविसं जीव ! किं पियसि ? ॥४९०॥ अन्नन्नसुहसमागमचिंतासयत्थिओ सयं कीस ? | कुण धम्मं जेण सुहं, सोच्चियं चिंतेइ तुह सव्वं ॥ ४९१९॥ संपज्जंति सुहाई, जइ धम्मविवज्जियाण वि नराणं। ता होज्ज तिहुयणम्मि वि, कस्स दुहं ? कस्स व न सोक्खं॥४९२॥ जह कागिणीइ हेउं, कोडिं रयणाण हारए कोई । तह तुच्छविसयगिद्धा, जीवा हारंति सिद्धिसुहं ॥ ४९३ ॥ धम्मो न कओ साउं, न जेमियं नेय परिहियं सहं । आसाए विनडिएहि, हा ! दुलओ हारिओ जम्मो॥४९४॥ नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघसाहूणं। गिण्हंतेण अवण्णं, मूढेणं नासिओ अप्पा॥४९५॥ सोयंति ते वराया, पच्छा समुवट्ठियम्मि मरणम्मि। पावपमायवसेहिं, न संचिओ जेहिं जिणधम्मो ॥४९६॥ लद्धुं पि दुलहधम्मं, सुहेसिणा इह पमाइयं जेण। सो भिन्नपोयसंजत्तिओ व्व भमिही भवसमुद्दे॥४९७॥ गहियं जेहि चरित्तं, जलं व तिसिएहि गिम्हपहिएहिं । कयसोग्गइपत्थयणा, ते मरणंते न सोयंति॥४९८॥ को जाणइ पुणरुत्तं, होही कइया वि धम्मसामग्गी ?। रंक व्व धणं कुणह महव्वयाण इहिं पि पत्ताणं ॥ ४९९॥ अलमित्थ वित्थरेणं, कुरु धम्मं जेण वंछियसुहाई। पावेसि पुराहिवनंदणो व्व धूया व नरवइणो॥५००॥ इय भावणाहि सम्मं, णाणी जिणवयणबद्धमइलक्खो। जलणो व्व पवणसहिओ, समूलजालं दहइ कम्मं ॥ ५०१॥ नाणे आउत्ताणं, नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं। को निज्जरं तुलेज्जा, चरणम्मि परक्कमंताणं ?||५०२॥ भवभावना

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