Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 200
________________ परिशिष्ट १ १८७ दुलहो च्चिय जिणधम्मो, पत्ते मणुयत्तणाइभावे वि। कुपहबहयत्तणेणं, विसयसुहाणं च लोहेणं॥४७५॥ जस्स बहिं बहुयजणो, लद्धो न तए वि जो बहु कालं। लद्धम्मि जीव ! तम्मि वि, जिणधम्मे किं पमाएसि ?॥४७६॥ उवलद्धो जिणधम्मो, न य अणुचिन्नो पमायदोसेणं। हा जीव ! अप्पवेरिअ !, सुबहुं पुरओ विसूरिहिसि॥४७७।। दुलओ पुणरवि धम्मो, तुमं पमायाउरो सुहेसी या दसहं च नरयदक्खं, किं होहिसि ? तं न याणामो॥४७८॥ लद्धम्मि वि जिणधम्मे, जेहिं पमाओ कओ सुहेसीहिं। पत्तो वि हु पडिपुन्नो, रयणनिही हारिओ तेहि।।४७९॥ जस्स य कुसुमोग्गमुच्चिय, सुरनररिद्धी फलं तु सिद्धिसुहं। तं चिय जिणधम्मतरुं, सिंचसु सुहभावसलिलेहि।।४८०॥ जिणधम्मं कुव्वंतो, जं मन्नसि दुक्करं अणुट्ठाणं। तं ओसहं व परिणामसंदरं मुणस सुहहेउं॥४८१॥ इच्छंतो रिद्धीओ, धम्मफलाओ वि कुणसि पावाइं। कवलेसि कालकूडं, मूढो चिरजीवियत्थी वि॥४८२॥ भवभमणपरिस्संतो, जिणधम्ममहातरुम्मि वीसमिओ। मा जीव ! तम्मि वि तुमं, पमायवणहुयवहं देसु॥४८३॥ अणवरयभवमहापहपयट्टपहिएहिं धम्मसंबलयं। जेहि न गहियं ते पाविहिंति दीणत्तणं पुरओ॥४८४॥ जिणधम्मरिद्धिरहिओ, रक्को च्चिय नूण चक्कवट्टी वि। तस्स वि जेण न अन्नो, सरणं नरए पडंतस्स॥४८५॥ धम्मफलमणुहवंतो, वि बुद्धिजसरूवरिद्धिमाईयं। तं पि हु न कुणइ धम्मं, अहह कहं सो न मूढप्पा ?॥४८६॥ जेण चिय जिणधम्मेण, गमिओ रंको वि रज्जसंपत्तिं। तम्मि वि जस्स अवन्ना, सो भन्नइ किं कुलीणो त्ति ?॥४८७॥ जिणधम्मसत्थवाहो, न सहाओ जाण भवमहारन्ने। किह विसयभोलियाणं, निव्वुइपुरसंगमो ताणं ?॥४८८॥

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