Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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परिशिष्ट १
१८१
आणं विलुपमाणे, अणायरे सयलपरियरजणम्मि। तं रिद्धिं पुरओ पुण, दारिद्दभरं नियंताणं॥३९१॥ रयणमयपुत्तियाओ, व सुवन्नकंतीओ तत्थ भज्जाओ। पुरओ उण काणं कुज्जियं च असुइं च बीभत्थं॥३९२॥ तत्थ वि य दुव्विणीयं, किलेसलंभं पियं मुणंताणं। तत्थ मणिच्छियआहारविसयवत्थाइसुहियाण।।३९३॥ पुरओ परघरदासत्तणेण विण्णायउयरभरणाणं। रमियाइं तत्थ रमणिज्जकप्पतरुगहणदेसेसु॥३९४॥ पुरओ गब्भे य ठिई, दटुं दुट्ठाइ रासहीए वा। सा उप्पज्जइ अरई, सुराण जं मुणइ सव्वन्नू॥३९५॥ अज्ज वि य सरागाणं, मोहविमूढाण कम्मवसगाणं। अन्नाणोवहयाणं, देवाण दुहम्मि का संका ?॥३९६॥ सम्मद्दिट्ठीण वि गब्भवासपमुहं दुहं धुवं चेव। हिंडंति भवमणंतं, च केइ गोसालयसरिच्छा॥३९७॥ तम्हा देवगईए, वि जं तित्थयराणं समवसरणाई। कीरइ वेयावच्चं, सारं मन्नामि तं चेव॥३९८॥ एत्थ य चउगइजलहिम्मि परिब्भमंतेहिं सयलजीवेटिं। जायं मयं च सहिओ, अणंतसो दुक्खसंघाओ॥३९९॥ सो नत्थि पएसो तिहुयणम्मि तिलतुसतिभागमेत्तोऽवि। जाओ न जत्थ जीवो, चुलसीईजोणिलक्खेसु॥४००॥ सव्वाणि सव्वलोए, अणंतखुत्तो वि रूविदव्वाई। देहोवक्खरपरिभोयभोयणत्तेण भुत्ताइं॥४०१॥ मयरहरो व्व जलेहि, तह वि हु दुप्पूरओ इमो अप्पा। विसयामिसम्मि गिद्धो, भवे भवे वच्चइ न तत्ति।।४०२॥ इय भुत्तं विसयसुहं, दुहं च तप्पच्चयं अनंतगुणं। इण्हिं भवदुहदलणम्मि जीव ! उज्जमसु जिणधम्मे॥४०३॥ बीयट्ठाणमुवटुंभहेयवो चिंतिउं सरूवं च। को होज्ज सरीरम्मि वि, सुइवाओ मुणियतत्ताणं ?॥४०४॥

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