Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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१७६
भवभावना
पणपन्नाइ परेणं, महिला गम्भं न धारए उयरे। पणसत्तरीइ परओ, पाएण पमं भवेऽबीओ॥३२१॥ वाससयाउयमेयं, परेण जा होइ पुव्वकोडीओ। तस्सद्धे अमिलाणा, सव्वाउयवीसभागो उ॥३२२॥ तम्हा मण्यगईए, वि सारं पेच्छामि एत्तियं चेव। जिणसासणं जिणिंदा, महरिसिणो नाणचरणधणा॥३२३॥ पडिवज्जिऊण चरणं, जं च इहं केइ पाणिणो धन्ना। साहंति सिद्धिसोक्खं, देवगईए व वच्चंति॥३२४॥ तेणेव पगइभद्दो, विणयपरो विगयमच्छरो सदओ। मणयाउयं निबंधइ, जह धरणीधरो सुनंदो य॥३२५॥ देवगई चिय वोच्छं, एत्तो भवणवइवंतरसुरेहि। जोइसिएहिं वेमाणिएहिं जुत्तं समासेण॥३२६॥ दसविहभवणवईणं, भवणाणं होंति सव्वसंखाए। कोडीओ सत्त बावत्तरीए लक्खेहिं अहियाओ॥३२७॥ ताई पुण भवणाई, बाहिं वट्टाइं होंति सयलाई। अंतो चउरंसाइं, उप्पलकन्नियनिभा हेट्ठा॥३२८॥ सव्वरयणामयाइं, अट्टालयभूसिएहिं तुंगेहिं। जंतसयसोहिएहिं, पायारेहिं व गूढाइं॥३२९॥ गंभीरखाइयापरिगयाइं किंकरगणेहिं गुत्ताई। दिप्पंतरयणभासुरनिविट्ठगोउरकवाडाइं॥३३०॥ दारपडिदारतोरणचंदनकलसेहिं भूसियाई च। रयणविणिम्मियपुत्तलियखंभसयणासणेहिं च॥३३१॥ कलिहाइ रयणरासीहि दिप्पमाणाइ सोमकंतीहि। सव्वत्थ विइन्नदसद्धवन्नकुसुमोवयाराइं॥३३२॥ बहुसुरहिदव्वमीसियसुयंधगोसीसरसनिसित्ताई। हरिचंदणबहलथबक्कदिन्नपंचंगुलितलाइं॥३३३॥ डझंतदिव्वकुंदुरुतुरुक्ककिण्हगुरुमघमघंताई। वरगंधवट्टिभूयाइं सयलकामत्थकलियाइं॥३३४॥

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