Book Title: Bhavbhavna Prakaranam
Author(s): Hemchandracharya, Vairagyarativijay
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 181
________________ १६८ भवभावना निद्दयपारिद्धियनिसियसेल्लनिब्भिन्नखिन्नदेहेण। हरिणत्तणम्मि रे ! सरसु जीव ! जं विसहियं दुक्खं।।२०९॥ बद्धो पासे कूडेसु निवडिओ वागुरासु संमूढो। पच्छा अवसो उक्कत्तिऊण कह कह न खद्धो सि ?॥२१०॥ सरपहरवियारियउयरगलियगब्भं पलोइउं हरिणिं। सयमवि य पहरविहुरेण सरसु जह जूरियं हियए॥२११॥ मायावाहसमारद्धगोरिगेयज्झुणीसु मुझंतो। सवणावहिओ अन्नाणमोहिओ पाविओ निहणं॥२१२॥ दह्रण कूडहरिणिं, फासिंदियभोलिओ तहिं गिद्धो। विद्धो बाणेण उरम्मि घुम्मिउं निहणमणुपत्तो॥२१३॥ चित्तयमइंदकमनिसियनहरखरपहरविहुरियंगस्स। जह तुह दुहं कुरंगत्तणम्मि तं जीव ! किं भणिमो ?॥२१४॥ वइविवरविहियझंपो, गत्तासूलाइ निवडिओ संतो। जवचणयचरणगिद्धो, विद्धो हिययम्मि सलाहिं।।२१५॥ मत्तो तत्थेव य नियपमायओ निहयरुक्खगयसिंगो। सुबहुं वेल्लंतो जं, मओऽसि तं किं न संभरसि ?॥२१६॥ गिम्हे कंताराइसु, तिसिओ माइण्हियाइ हीरंतो। मरइ कुरंगो फुटुंतलोयणो अहव थेवजले॥२१७॥ हरिणो हरिणीऍ कए, न पियइ हरिणी वि हरिणकज्जेण। तुच्छजले बुड्डमुहाई दो वि समयं विवन्नाइं॥२१८॥ एत्थ य हरिणत्ते पुप्फचूलकुमरेण जह सभज्जेण। दुहमणुभूयं तह सुणसु जीव ! कहियं महरिसीहिं।।२१९॥ पज्जलियजलणजालासु उवरि उल्लंबिऊण जीवंतो। भुत्तोऽसि भुंजिउं सूयरत्तणे किह न तं सरसि ?॥२२०॥ गहिऊण सवणमुच्छालिऊण वामाओ दाहिणगयम्मि। सुणयम्मि तओ तत्थ वि, विद्धो सेल्लेण निहण गओ॥२२१॥ उप्पन्नस्स पिउस्स वि, भवपरियत्तीइ सूयरत्तेण। पिट्ठिइमंसक्खाई, रायसुओ बोहिओ मुणिणा॥२२२॥

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