Book Title: Bharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 2
Author(s): Radheshyamdhar Dvivedi
Publisher: Sampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
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२४०-२४२
२४३-५०२
२५१-२५४
२५५-२६३
२६४-२७१
२७२-२७५
२७६-२७८
२६. पौर्वात्य तथा पाश्चात्य चिन्तनधाराओं के समन्वय से नया दर्शन
संभव-डॉ० ठाकुर जयदेव सिंह ३०. भारतीय चिन्तन परम्परा में नये जीवनदर्शन की अपेक्षा
-प्रो० जगन्नाथ उपाध्याय ३१. आधुनिक पाश्चात्यदर्शन की गतिविधि-प्रो. रमाकान्त त्रिपाठी ३२. भारतीय परम्परा के अनुशीलन से नया दर्शन संभव .
-प्रो० रघुनाथ गिरि २४. संस्कृति दर्शन : संभावनायें एवं स्वरूप-डा० शंभुनाथ सिंह २५. भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन दर्शनों की संभावनायें
-श्रीराधेश्यामधर द्विवेदी २६. अध्यात्म और आधुनिक समाज--प्रो. देवस्वरूप मिश्र २७. भारतीयचिन्तन की परम्परा में नये दर्शनों का दिशानिर्देश
-प्रो. व्रजवल्लभ द्विवेदी २८. दर्शन दिग्दर्शन-स्वामी रामाश्रम २६. मौलिकदर्शन की संभाव्य दिशायें-डॉ. हर्षनारायण ३०. नये जीवनदर्शन की कुछ समस्यायें और संभावनायें
-प्रो• कृष्णनाथ । ३१. धर्म ? दर्शन ? विज्ञान ? तीन प्रश्न चिन्हों की अद्यतन नियताप्ति
-डॉ० मायाप्रसाद त्रिपाठी ३२. भारतीय चिन्तन की परम्परा में नये दर्शन की संभावना
- आचार्य रामप्रसाद त्रिपाठी ३३. भारतीयचिन्तनपरम्परायां नूतनदर्शनस्य संभावना
-पण्डितराजराजेश्वरशास्त्री द्राविड: ३४. परम्परायां दर्शनानां ध्येयं तत्स्वरूपञ्च
-श्रीविश्वनाथशास्त्रो दातारः
२७६.२८२
२८३-२८७ २८८-२९९
३००-३०५
३०६-३०९
३१०-३१३
३१४-३१५
३१६-३२
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