Book Title: Bhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 17
________________ जैन दर्शन में आचार्य कुन्दकुन्द ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ' मोह और क्षोभ से रहित आत्मा की जो समत्वपूर्ण अवस्था है, वही मोक्ष है।' व्यवहार के क्षेत्र में भी हम देखते हैं कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति तनावों से मुक्त होकर आत्मिक शान्ति को प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि यही उसकी आन्तरिक आकांक्षा या निज स्वभाव है। इस प्रकार, वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में जैन दर्शन के अनुसार जीवन का सम्यक् लक्ष्य तनावों से मुक्त होना ही है। सभी प्रकार के तनाव इच्छा, अपेक्षा और भोगाकांक्षा (तृष्णा) जन्य हैं, अतः महावीर के जीवन दर्शन का लक्ष्य इच्छा और आकांक्षाओं से परे समत्वपूर्ण चैत्तसिक अवस्था की प्राप्ति है। मानव समाज का यह दुर्भाग्य है कि वह अपनी अन्तरात्मा से तनावों से मुक्त होना चाहता है, किन्तु उसके सारे प्रयत्न तनावों के सृजन के लिए ही होते रहते हैं। इच्छा, आकांक्षा, राग-द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार, कपटपूर्ण जीवन - व्यवहार आदि सभी व्यक्ति के जीवन की आत्मतुला को उद्वेलित करते रहते हैं और यही आत्म- असंतुलन या चित्तवृत्ति में विक्षोभ उसे तनावपूर्ण स्थिति में ले जाते हैं। अतः, भारतीय दर्शनों के अनुसार जीवन का लक्ष्य तनावों से मुक्ति ही है, यही वास्तविक धर्म है, सम्यक् साधना है, इसे ही आत्मपूर्णता या आत्मिक शान्ति कहते हैं । सूत्रकृतांगसूत्र में कहा गया है कि सभी अर्हत् (वीतराग पुरुष) इसी आत्मिक शान्ति की अवस्था में ही प्रतिष्ठित हैं। अतः, यदि साररूप में कहना हो, तो महावीर के धर्म-दर्शन के अनुसार जीवन का लक्ष्य तनावों से मुक्ति ही है। वे सभी जीवन व्यवहार, जो मेरे वैयक्तिक जीवन में, मेरे परिवार में, समाज में या राष्ट्र में अथवा समग्र विश्व में तनाव उत्पन्न कर स्वयं को व दूसरों को उद्वेलित करते हैं, वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में शान्ति भंग करते हैं, वे सभी अधर्म हैं। इसके विपरीत, वे सभी प्रयत्न या उपाय, जिनके द्वारा व्यक्ति इन चैत्तसिक विक्षाभों को या चैत्तसिक विचलन को समाप्त कर पाता है, वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में शान्ति स्थापित करता है, वे सभी धर्म हैं, इसीलिए गीता में भी कहा गया है कि समत्व ही योग है। इसी बात को प्रकारान्तर से भागवत में भी कहा गया है कि समत्व की आराधना ही अच्युत अर्थात् भगवान् की आराधना है। इस प्रकार, भारतीय जीवन दर्शन का प्राथमिक सिद्धान्त है- हम तनावों से मुक्त होकर जीवन जीयें। वर्त्तमान युग में जो भौतिकवादी, भोगवादी और उपभोक्तावादी संस्कृतियों का विकास हुआ है, उसके कारण

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