Book Title: Bhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 135
________________ भंगों के आगमिक रूप भंगों के सांकेतिक रूप 1. स्यात् अस्ति अ' उवि है 2. स्यात् नास्ति 3. स्यात् अस्ति नास्ति च 4. स्यात् अवक्तव्य स्यात् अस्ति च अव्यक्तव्य च 6. स्यात् नास्ति च अवक्तव्य च 111 כ उवि नहीं है। अं उवि ~ है. अउ वि नहीं है (अं. अँ)" > उ अवक्तव्य है अउ वि ~ है. (31.372)3 अवक्तव्य है अथवा अउ वि X है. (3700)3 अवक्तव्य है। अउ वि नहीं है, (अ. अं)" उ ठोस उदाहरण यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं, तो आत्मा नित्य है। यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं, तो आत्मा नित्य नहीं है। यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं, तो आत्मा नित्य है और यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं, तो आत्मा नित्य नहीं है। यदि द्रव्य और पर्याय- दोनों ही अपेक्षा से एक साथ विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। ( क्योंकि दो भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से दो अलग-अलग कथन तो हो सकते हैं, किन्तु एक कथन नहीं हो सकता) यदि द्रव्य की अपेक्षा से विचार करते हैं, तो आत्मा नित्य है, किन्तु यदि आत्मा की द्रव्य, पर्याय दोनों या अनंत की दृष्टि से विचार करते हैं तो आत्मा अवक्तव्य है। यदि पर्याय की अपेक्षा से विचार करते हैं, तो आत्मा

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