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सप्तभंगी
सप्तभंगी स्याद्वाद की भाषायी अभिव्यक्ति के सामान्य विकल्पों को प्रस्तुत करती है। हमारी भाषा विधि-निषेध की सीमाओं से घिरी हुई है। 'है' और 'नहीं है'- हमारे कथनों के दो प्रारूप हैं, किन्तु कभी - कभी हम अपनी बात को स्पष्टतया 'है' (विधि) और 'नहीं है' (निषेध) की भाषा में प्रस्तुत करने में असमर्थ होते हैं, अर्थात् सीमित शब्दावली की यह भाषा हमारी अनुभूति को प्रकट करने में असमर्थ होती है। ऐसी स्थिति में हम एक तीसरे विकल्प 'अवाच्य' या 'अवक्तव्य' का सहारा लेते हैं, अर्थात् शब्दों के माध्यम से 'है' और 'नहीं है' की भाषायी सीमा में बांधकर उसे कहा नहीं जा सकता है। इस प्रकार विधि, निषेध और अवक्तव्यता से जो सात प्रकार के वचन विन्यास बनते हैं, उसे सप्तभंगी कहा जाता है।" सप्तभंगी में स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति और स्यात् अवक्तव्य - ये तीनों असंयोगी मौलिक भंग हैं। शेष चार भंग इन तीनों के संयोग से बनते हैं। उनमें स्यात् अस्ति-नास्ति, स्यात् अस्ति - अवक्तव्य और स्यात् नास्ति - अवक्तव्य ये तीन द्विसंयोगी और अंतिम स्यात-अस्ति- नास्ति - अव्यक्तव्य यह त्रिसंयोगी भंग है। निर्णयों की भाषायी अभिव्यक्ति विधि, निषेध और अवक्तव्य - इन तीन ही रूप में होती है। अतः उससे तीन ही मौलिक भंग बनते हैं और इन तीन मौलिक भंगों में से गणितशास्त्र के संयोग के नियम के आधार पर सात भंग बनते हैं, न कम, न अधिक । अष्टसहस्री टीका में आचार्य विद्यानंद ने इसीलिए यह कहा है कि जिज्ञासा और संशय और उनके समाधान सप्त प्रकार के हो सकते हैं। अतः, जैन आचार्यों की सप्तभंगी की यह व्यवस्था निर्मूल नहीं है। वस्तुतत्त्व के अनन्त धर्मों में से प्रत्येक को लेकर एक-एक सप्तभंगी और इस प्रकार अनन्त सप्तभंगियां तो बनाई जा सकी हैं किन्तु अनन्तभंगी नहीं । श्वेताम्बर आगम भगवतीसूत्र में षट्प्रदेशी स्कंध के संबंध में जो 23 भंगों की योजना है, वह वचन - भेद - कृत संख्याओं के कारण
उसमें भी मूलभंग सात ही हैं। पंचास्तिकाय और प्रवचनसार आदि प्राचीन दिगम्बर आगम ग्रंथों में और शेष परवर्ती साहित्य में सप्तभंगी ही मान्य रहे हैं। अतः, विद्वानों को इन भ्रमों का निवारण कर लेना चाहिए कि ऐसे संयोगों से सप्तभंगी ही क्यों अनन्त भंगी भी हो सकती है अथवा आगमों में सात भंग नहीं हैं। सप्तभंगी भी एक परवर्ती विकास है।
सप्तभंगी का प्रत्येक भंग एक सापेक्षिक निर्णय प्रस्तुत करता है। सप्तभंगी में स्यात् अस्ति आदि जो सात भंग हैं, वे कथन के तार्किक आकार हैं, उसमें स्यात् शब्द कथन की