Book Title: Bhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 149
________________ (स) अनेकांत धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में सभी धर्म साधना पद्धतियों का मुख्य लक्ष्य राग, आसक्ति, अहं एवं तृष्णा की समाप्ति रहा है। जैन धर्म की साधना का लक्ष्य वीतरागता है, तो बौद्ध धर्म की साधना का लक्ष्य वीततृष्ण होना माना गया है। वहीं, वेदांत में अहं और आसक्ति से ऊपर उठना ही मानव का साध्य बताया गया है, लेकिन क्या एकांत या आग्रह वैचारिक राग, वैचारिक आसक्ति, वैचारिक तृष्णा अथवा वैचारिक अहं दोषरूप नहीं हैं और जब तक वे उपस्थित हैं, धार्मिक भावना के क्षेत्र में लक्ष्य की सिद्धि कैसे होगी? जिन साधना पद्धतियों में अहिंसा के आदर्श को स्वीकार किया गया, उनके लिए आग्रह या एकांत वैचारिक हिंसा का प्रतीक भी बन जाता है। एक ओर साधना के वैयक्तिक पहलू की दृष्टि से मताग्रह वैचारिक आसक्ति या राग का ही रूप है, तो दूसरी ओर साधना के सामाजिक पहलू की दृष्टि से वह वैचारिक हिंसा है। वैचारिक आसक्ति और वैचारिक हिंसा से मुक्ति के लिए धार्मिक क्षेत्र में अनाग्रह और अनेकांत की साधना अपेक्षित है। वस्तुतः, धर्म का आविर्भाव मानव जाति में शांति और सहयोग के विस्तार के लिए हुआ था। धर्म मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने के लिए था, लेकिन आज वही धर्म मनुष्य-मनुष्य में विभेद की दीवारें खींच रहा है। धार्मिक मतान्धता में हिंसा, संघर्ष, छल, छद्म, अन्याय, अत्याचार क्या नहीं हो रहा है? क्या वस्तुतः इसका कारण धर्म हो सकता है? इसका उत्तर निश्चित रूप से 'हाँ' में नहीं दिया जा सकता। यथार्थ में 'धर्म' नहीं, किन्तु धर्म का आवरण डाल कर मानव की महत्वाकांक्षा, उसका अहंकार ही यह सब करवाता रहा है। यह धर्म नहीं, धर्म का नकाब डाले अधर्म है। मूल प्रश्न यह है कि क्या धर्म अनेक हैं या हो सकते हैं? इस प्रश्न का उत्तर अनेकांतिक शैली से यह होगा कि धर्म एक भी है और अनेक भी। साध्यात्मक धर्म या धर्मों का साध्य एक है, जबकि साधनात्मक धर्म अनेक हैं। साध्य रूप में धर्मों की एकता और साधना रूप से अनेकता को ही यथार्थ दृष्टिकोण कहा जा सकता है। सभी धर्मों का साध्य है- समत्व लाभ (समाधि) अर्थात् आन्तरिक तथा बाह्य शांति की स्थापना तथा उसके लिए विक्षोभ के जनक राग-द्वेष और अस्मिता (अहंकार) का निराकरण, लेकिन रागद्वेष और अस्मिता के निराकरण के उपाय क्या हों? यहीं विचार-भेद प्रारम्भ होता है। लेकिन यह विचार-भेद विरोध का आधार नहीं बन सकता। एक ही साध्य की ओर

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