Book Title: Bhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 144
________________ है। उसके अनुसार, तार्किक निर्णयों में केवल सत्य, असत्य-ऐसे दो मूल्य ही नहीं होते, अपितु सत्य, असत्य और संभावित सत्य-ऐसे तीन मूल्य होते हैं। इसी संदर्भ में डॉ.एस.एस.बारलिंगे ने जैन न्याय को त्रिमूल्यात्मक सिद्ध करने का प्रयास जयपुर की एक गोष्ठी में किया था। यद्यपि जहां तक जैनन्याय या स्याद्वाद के सिद्धान्त का प्रश्न है, उसे त्रिमूल्यात्मक माना जा सकता है क्योंकि जैनन्याय में प्रमाण, सुनय और दुर्नय-ऐसे तीन क्षेत्र माने गए हैं। इसमें प्रमाण -सुनिश्चित सत्य, सुनय-संभावित सत्य और दर्नयअसत्यता के परिचायक हैं। पुनः, जैन दार्शनिकों के प्रमाणवाक्य और नयवाक्य-ऐसे दो प्रकार के वाक्य मानकर प्रमाणवाक्य को सकलादेश (सुनिश्चित सत्य या पूर्ण सत्य) कहा है। नयवाक्य को न सत्य कहा जा सकता है और न असत्य। अतः, सत्य और असत्य के मध्य एक तीसरी कोटि आंशिक सत्य या संभावित सत्य मानी जा सकती है। पुनः, वस्तुतत्त्व की अनन्तधर्मात्मकता एवं स्याद्वाद सिद्धान्त भी सम्भावित सत्यता के समर्थक हैं, क्योंकि वस्तुतत्त्व की अनन्तधर्मात्मकता अन्य सम्भावनाओं को निरस्त नहीं करती है और स्यावाद उस कथित सत्यता के अतिरिक्त अन्य सम्भावित सत्यताओं को स्वीकार करता है। इस प्रकार, जैन दर्शन की वस्तुतत्त्व की अनन्तधर्मात्मकता तथा प्रमाण, नय और दुर्नय की धारणाओं के आधार पर स्याद्वाद सिद्धान्त त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र (three valued logic) या बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र (many valued logic) का समर्थक माना जा सकता है, किन्तु जहां तक सप्तभंगी का प्रश्न है, उसे त्रिमूल्यात्मक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसमें नास्तिक नामक भंग एवं अवक्तव्य नामक भंग क्रमशः असत्य और अनियतता (indeterminate) के सूचक नहीं हैं। सप्तभंगी का प्रत्येक भंग सत्य-मूल्य का सूचक है, यद्यपि जैन विचारकों ने प्रमाण-सप्तभंगी और नय-सप्तभंगी के रूप में सप्तभंगी के जो दो रूप माने हैं, उसके आधार पर यहां यह कहा जा सकता है कि प्रमाणसप्तभंगी के सभी भंग सुनिश्चित सत्यता और नय सप्तभंगी के सभी भंग सम्भावित या आंशिक सत्यता का प्रतिपादन करते हैं। असत्य का सूचक तो केवल दुर्नय ही है। अतः, सप्तभंगी त्रिमूल्यात्मक नहीं है। किन्तु, मेरे शिष्य डॉ.भिखारीराम यादव ने अपने प्रस्तुत शोध निबंध में अत्यन्त श्रमपूर्वक सप्तभंगी को सप्तमूल्यात्मक सिद्ध किया है और अपने पक्ष के समर्थन में समकालीन पाश्चात्य तर्कशास्त्र के प्रमाण भी प्रस्तुत किए हैं। आशा है विद्वज्जन उनके इस

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