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राज्यासीन हुए। जबकि दूसरी हेमचन्द्र की मान्यता अनुसार वे वीर निर्वाण के 155 वर्ष पश्चात् राज्यासीन हुए। हेमचन्द्र द्वारा प्रस्तुत यह दूसरी मान्यता महावीर के ऊ.पू.527 में निर्वाण प्राप्त करने की अवधारणा में बाधक है। इस विवेचन से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में प्राचीनकाल में भी विवाद था।
चूँकि महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में प्राचीन आन्तरिक साक्ष्य सबल नहीं थे, अतः पाश्चात्य विद्वानों ने बाह्य साक्ष्यों के आधार पर महावीर की निर्वाण तिथि को निश्चित करने का प्रयत्न किया, परिणामस्वरूप महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में अनेक नये मत भी प्रकाश में आये। महावीर की निर्वाण तिथि के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के मत इस प्रकार हैं -- 1. हरमन जकोबी, ई.पू.477 इन्होंने हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व के उस
उल्लेख को प्रामाणिक माना है कि चन्द्रगुप्त मौर्य वीर निर्वाण के 155 वर्ष पश्चात् राज्यासीन हुआ और इसी आधार पर
महावीर की निर्वाण तिथि निश्चित की। 2. जे.शारपेन्टियर," ई.पू.467 इन्होंने भी हेमचन्द्र को आधार बनाया है
और चन्द्रगुप्त मौर्य के 155 वर्ष पूर्व महावीर
का निर्वाण माना। 3. पं.ए.शान्तिराज शास्त्री, ई.पू.663. इन्होंने शक सम्वत् को विक्रम सम्वत् माना
है और विक्रम सं. के 605 वर्ष पूर्व महावीर
का निर्वाण माना। 4. प्रो.काशीप्रसाद जायसवाल" इन्होंने अपने लेख 'आइडेन्टीफिकेशन
ऑफ कल्की' में मात्र दो परम्पराओं का उल्लेख किया है। महावीर की निर्वाण तिथि
का निर्धारण नहीं किया है। 5. एस.व्ही.वैकटेश्वर ई.पू.437 इनकी मान्यता अनन्द विक्रम संवत् पर
आधारित है। यह विक्रम संवत् के 90 वर्ष बाद प्रचलित हुआ था।