Book Title: Bhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan Author(s): Sagarmal Jain Publisher: Prachya VidyapithPage 65
________________ 41. 42. 43. 44. 45. 46. 47. 48. 49. (ब) मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना, पृ. 137. ज्ञातव्य है कि मुनिजी ने मौर्यकाल को 108 के स्थान पर 160 बनाने का प्रयत्न किया है, वह इतिहास सम्मत नहीं है। 58. 59. ज्ञातव्य है कि मुनिजी द्वारा एक और सम्भूति विजय के स्वर्ग के काल को साठ वर्ष करना और दूसरी ओर मौर्यों के इतिहास सम्मत 108 वर्ष के काल को एक सौ साठ वर्ष करना केवल अपनी मान्यता की पुष्टि का प्रयास है। तित्थोगाली पइन्नयं - पइण्णा सुत्ताइं । - सं. पुण्यविजयजी महावीर विद्यालय, 793, 794. डॉ. रामशंकर त्रिपाठी, प्राचीन भारत का सतिहास, मोतीलाल बनारसीदास, 1968, पृ. 139 ज्ञातव्य है ‘“इन्होंने सम्प्रतिकाल 216-207 ई.पू. माना है। (अ) देखें - जैन शिलालेख संग्रह भाग 2, प्रकाशक मणिकचन्द्र दिगम्बर ग्रन्थमाला, 1952, लेख क्रमांक 41, 54, 55, 56, 59, 63 (ब) आर्यकृष्ण (कण्ह) के लिये देखें - V. A. Smith The jain S. and other Antiquities of Mathura, P. 24. नन्दी सूत्र स्थविरावली 27, 28, 29. कल्पसूत्र स्थविरावली (अन्तिम गाथा भाग) गाथा 1 एवं 4 मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना, जालौर, पृ. 122, 3 - युगप्रधान पट्टावलियाँ। मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना, जालौर, पृ. 121 50. देखें - नंदीसूत्र स्थविरावली 27, 28 एवं 29 51. देखें - जैन शिलालेख संग्रह भाग - 2, लेख क्रमांक 41, 67. 52. मुनि कल्याण विजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना, जालौर, पृ. 106. 53. V.A. Smith, the Jain Stupa and other Antiquities of Mathura P. 54. कल्पसूत्र स्थविरावली (अन्तिम गाथा भाग), गाथा 1 55. विशेषावश्यक भाष्य 56. . जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, लेख क्रमांक 56, 59. 57. मुनि जिनविजय विविधगच्छीय पट्टावली संग्रह, प्रथम भाग, सिंघी जैनशास्त्र शिक्षा पीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई, पृ. 17 कल्पसूत्र (सं. माणिकमुनि, अजमेर) 147. गुजरात नो राजकीय अने सांस्कृतिक इतिहास ग्रन्थ 3, वी. जे. इंस्टीट्यूट अहमदाबाद - 9, पृ. 40. देखें जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, स सितम्बर 1952, लेख क्रमांक 54. --***-- 59Page Navigation
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