Book Title: Bhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 117
________________ युग) कहा जाता है। साम्यवादी विचारधारा की दृष्टि से यह प्रारम्भिक साम्यवाद (Primitive Socialism) की अवस्था थी। सामान्यतया, इस युग में मानव की आकांक्षाएं इतनी बढ़ी-चढ़ी नहीं थीं और एक दृष्टि से वह सुखी और संतुष्ट था। किन्तु, धीरे धीरे एक ओर जनसंख्या बढ़ी तथा दूसरी ओर प्रकृति की समृद्धता कम होने लगी, अतः जीवन जीना जटिल होने लगा। यहीं से श्रम की उद्भावना हुई। जैनपरम्परा के अनुसार, ऐसी अवस्था में सर्वप्रथम भगवान् ऋषभदेव ने मानव जाति को कृषि की शिक्षा दी। कृषि में जहां एक ओर मानव श्रम लगने लगा, वहीं दूसरी ओर उस श्रम के परिणामस्वरूप उत्पन्न अन्न सामग्री के संचयन और स्वामित्व का प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ। वस्तुतः, कृषि से उत्पन्न सामग्री ऐसी नहीं, जो वर्ष में हर समय सुलभ हो सके, केवल वर्षा पर आश्रित कृषि नियत समय पर अपनी उपज दे पाती थी और इसलिए वर्षभर के लिए अन्न का संचयन आवश्यक था। जीवन रक्षण के लिए संचयन की इस वृत्ति से परिग्रह का विचार विकसित हुआ है। मनुष्य की यह संग्रहवृत्ति कृषि उत्पादन के संचयन और स्वामित्व तक ही सीमित नहीं रही, अपितु कृषि भूमि और कृषि में सहयोगी पशुओं के स्वामित्व का प्रश्न भी सामने आया। हो सकता है कि कुछ समय तक मानव ने समूह के सामूहिक स्वामित्व की धारणा के आधार पर कार्य चलाया हो, किन्तु संचयन और स्वामित्व की वृत्ति के परिणामस्वरूप स्वार्थ का उद्भव स्वाभाविक ही था। मानव की इस स्वामित्व की भूख और स्वार्थलिप्सा ने सामन्तवाद को जन्म दिया। राज्य एवं उनके स्वामी राजा, महाराजा और सामंत अस्तित्व में आए और परिणामस्वरूप मानव जाति स्वामी और दास वर्ग में विभाजित हो गई। मानव के शोषण, पीड़न और अत्याचार के एक नए युग का सूत्रपात हुआ । भगवान् ऋषभ के द्वारा प्रवर्त्तित वही कृषि क्रांति, जो मानव जाति की सुख-सुविधा और शांति का संदेश लेकर आई थी, भगवान् महावीर के युग तक आते-आते स्वार्थलिप्सा से युक्त हाथों में पहुंचकर न केवल मानव जाति में दास और स्वामी का तथा शोषित और शोषक वर्ग का भेद खड़ा कर रही थी, अपितु मानव समाज के एक बहुत बड़े भाग के संताप और पीड़ा का कारण भी बन गई थी। महावीर के युग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति भगवान् महावीर के युग में तत्कालीन समाज-व्यवस्था कैसी थी ? उसमें आर्थिक विषमताजन्य द्वेष, ईर्ष्या, शोषण और पीड़न आदि विद्यमान् थे या नहीं? यह महत्वपूर्ण 111

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