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की है। हम उस विवाद में उलझना तो नहीं चाहते, किन्तु एक बात स्पष्ट रूप से समझ लेना आवश्यक है कि दिगम्बर परम्परा के आगमतुल्य ग्रन्थ कषायपाहुड़, षट्खण्डागम आदि के जो प्रमाण इन विद्वानों ने दिये हैं, उन्हें यह ज्ञान होना चाहिये कि इन दोनों ग्रन्थों के मूल में कहीं भी महावीर के जन्मस्थान आदि के सन्दर्भ में कोई उल्लेख नहीं है। जो समस्त उल्लेख प्रस्तुत किये जा रहे हैं, वे उनकी जयधवला और धवला टीकाओं से हैं, जो लगभग 9वीं-10वीं शताब्दी की रचनाएँ हैं। इसी प्रकार, जिन पुराणों से सन्दर्भ प्रस्तुत किये जा रहे हैं, वे भी लगभग 9 वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी के मध्य रचित हैं, अतः ये सभी प्रमाण चूर्णि साहित्य से भी परवर्ती ही सिद्ध होते हैं, अतः उन्हें ठोस प्रमाणों के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। वे केवल सहायक प्रमाण ही कहे जा सकते हैं। इस सन्दर्भ में श्री राजमलजी जैन ने सिद्ध किया है कि इन प्रमाणों में भी एक दो अपवादों को छोड़कर सामान्यतया कुण्डपुर का ही उल्लेख है। कुण्डलपुर के उल्लेख तो विरल ही हैं और जो हैं, वे भी मुख्यतया परवर्ती ग्रन्थों के ही हैं। यहां हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि जब क्रमशः महावीर के जीवन के साथ चमत्कारिक घटनाएं जुड़ती गईं, तो अहोभाव के कारण क्षत्रियकुण्ड और ब्राह्मणकुण्ड को भी नगर या पुर कहा जाने लगा। कल्पसूत्र (पृष्ठ 44) में भी क्षत्रियकुण्डग्राम और ब्राह्मणकुण्डग्राम का ही उल्लेख है। यहां इन्हें जो 'खत्तीयकुण्डगामेनयरे' कहा गया है, उसमें 'ग्राम-नगर' शब्द से यही भाव अभिव्यक्त होता है कि ये दोनों मूलतः तो ग्राम ही थे, किन्तु वैशाली नगर के निकटवर्ती होने के कारण इन्हें ग्राम-नगर संज्ञा प्राप्त हो गई थी। वर्तमान में भी किसी बड़े नगर के विस्तार होने पर उसमें समाहित गांव नगर नाम को प्राप्त हो जाते हैं। वस्तुतः, क्षत्रियकुण्ड ही महावीर की जन्मभूमि प्रतीत होती है और यह वैशाली का ही एक उपनगर सिद्ध होता है। ज्ञातव्य है कि वैशाली का मूल नाम विशाला था। विशाल नगर होने के कारण ही इसका नाम वैशाली पड़ा था। पुरातात्त्विक साक्ष्यों की दृष्टि से वैशाली, नालंदा और लछवाड़ ( जो जमुई के निकट हैं) की प्राचीनता में कोई संदेह नहीं किया जा सकता, किन्तु प्राचीन साहित्य में नालंदा के समीप किसी कुण्डपुर या कुण्डलपुर का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता। वर्तमान लछवाड़, जमुई के निकट है और जमुई के सम्बन्ध में साहित्यिक और पुरातात्त्विक-दोनों ही प्रमाण उपलब्ध हैं। कल्पसूत्र में भगवान महावीरस्वामी के केवलज्ञान स्थान का जो उल्लेख मिलता है, उसमें यह कहा गया है कि 'जंभीयगामस्स अर्थात् जृम्भिक ग्राम के पास ऋजुवालिका नदी के किनारे वैय्यावृत्त चैत्य के न अधिक दूर न अधिक समीप शामक गाथापति के काष्टकरण में