Book Title: Bhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 35
________________ उल्लेखित किया है। श्री राजमल जैन ने अपनी पुस्तक 'महावीर की जन्मभूमि कुण्डपुर' में जो उल्लेख किया है कि कुण्डपुर ही 13वीं शताब्दी तक कुण्डग्राम हो गया होगा, एक भ्रान्ति है। हम पूर्व में उल्लेख कर आये हैं कि कल्पसूत्र आदि में स्पष्ट रूप से 'कुण्डग्राम' का ही उल्लेख है, कुण्डपुर का नहीं। हाँ, इतना अवश्य है कि आगमों में 'कुण्डपुरग्रामनगर' -ऐसा उल्लेख भी मिलता है। मेरी दृष्टि में 'ग्राम-नगर' ऐसा समासपद ग्रहण करने पर इसका अर्थ होगा नगर का समीपवर्ती गांव या वह गांव जो कालान्तर में किसी नगर का भाग या उपनगर बन गया हो। यहाँ एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गणनी ज्ञानमती माताजी ने भी कुण्डलपुर का पक्ष लेते हुए उसे विदेह में स्थित माना है। अब यह प्रश्न वर्द्धमान महावीर के वैशालिक होने का एक अन्य प्रमाण हमें थेरगाथा की अट्ठकथा (व्याख्या) में मिलता है। थेरगाथा में वर्द्धमान थेर का उल्लेख है। उसमें कहा गया है कि दान के पुण्य के परिणामस्वरूप वर्द्धमान ने देवलोक से च्यूत होकर गौतमबद्ध के जन्म लेने पर वैशाली के लिछवी राजकुल में उत्पन्न होकर प्रव्रज्या ग्रहण की। (इमस्मिं बुद्धपादे वेसालियं लिच्छवि राजकुले निब्बत्ति वड्डमानो तिस्स नामं अहोसि-थेरगाथा, अठ्ठकथा, नालन्दा संस्करण, पृ.153)। इस प्रकार यहाँ उन्हें वैशाली के लिछवी राजकुल में जन्म लेने वाला बताया गया। यद्यपि परम्परागत विद्वानों का यह विचार हो सकता है कि ये वर्द्धमान बौद्ध परम्परा में दीक्षित कोई अन्य व्यक्ति होंगे, किन्तु हमारा यह स्पष्ट अनुभव है कि जिस प्रकार ऋषिभाषित सभी अर्हत्ऋषि निर्ग्रन्थ परम्परा के नहीं हैं, उसी प्रकार थेरगाथा में वर्णित सभी स्थविर बौद्ध नहीं हैं। वैशाली के लिछवी राजकुल में उत्पन्न बुद्ध के समकालिक वर्द्धमान थेर वर्द्धमान महावीर से भिन्न नहीं माने जा सकते। थेरगाथा की अठ्ठकथा के अनुसार उन्होंने आंतरिक और बाह्य संयोगों को छोड़कर, रूपराग, अरूपराग तथा भवराग को समाप्त करने का उपदेश दिया तथा यह कहा है कि अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों को साक्षीभाव से देखते हुए भवराग और संयोजनों का प्रहाण सम्भव है, क्योंकि उनके ये विचार आचारांग एवं उत्तराध्ययन में भी मिलते हैं। इस उपदेश से यह स्पष्ट हो जाता है कि थेरगाथा में वर्णित वर्द्धमान थेर अन्य कोई नहीं, अपितु वर्द्धमान महावीर ही हैं। इस आधार पर भी यह सिद्ध होता है कि महावीर का जन्म वैशाली के लिछवी कुल में हुआ था। महावीर के प्रव्रज्या ग्रहण करने का उल्लेख करते समय यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि संवेग (वैराग्य) उत्पन्न होने पर उन्होंने अग्निकर्म का त्याग करके संघ से क्षमायाचना' करके कर्म परम्परा को देखकर प्रव्रज्या ग्रहण की। यह समग्र कथन

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