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काडखरबूजा
करता है; मृतिहर, रुक्षता, रक्तनिष्ठीवन, रकचरण, रक्कार्श, मूत्रप्रणालीस्थ क्षत, · हृत् व आसाशय व यकृद दाहहर, शीघ्रपाकी, कफ तथा रक्तवर्द्धक, कफज व वातज श्रान्त्रकूजनप्रद है । मु० आ० | इसका परिपक्व फल उपदेश . को गुणप्रद | इसके पके हुए और कच्चे फल का अचार प्लीहा के रोग में गुणकारक है । यह पाचक, दुधावर्धक, वायु•-लयकर्ता, बुक व वस्त्यस्मरी निःसारक और मूत्रल
। मांस विशेषतः कबाबों के मांस को अतिशीघ्र गलाता एवम् उसका दर्पन है । भारतवर्ष में प्रायः यह इसी काम में आता है । म० मु० । बु० मु० ।
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भारतवर्ष में डॉ० फ्लेमिङ्ग (१८१० ई० ) -ने इसके दुग्ध के कृमिघ्न रूप से उपयोग की ओर ध्यान दिलाया। इसके कथित गुणधर्म के प्रमाण के लिए वे मि० कार्पेण्टीर कोसिनी (Mr, Carpentier Cossigni) के लेखों से एक मनोरञ्जक भाग उद्धृत करते हैं । अभी हाल ही में मिए बटन ( Mr. Bouton ) ने इसका प्रबल प्रमाण पेश किया है; जिससे यह निश्चिततया निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इसके कृमिघ्न प्रभाव विषयक वर्णन वास्त विक घटना पर स्थापित किये गये हैं । वे डॉ० लेमारचन्द ( Dr. Lemarchand ) द्वारा व्यवहृत निम्न सेवन विधि का उल्लेख करते हैं-
ताजे खरबूजे का दुग्ध, और शहद, मत्येक की भर इनको भली भाँति मिति *कर उसमें उबलता हुआ जल ३ या ४ चम्मच भर धीरे धीरे योजित करें। और जब यह काफी शीतल होजाय तो इसे एक घूट में पी जाएँ । इसके दो घंटे पश्चात् सिर्का या नीबू के रस मिले · हुए एरडतैल की एक मात्रा सेवन करें । ...वश्यकतानुसार इसको दो दिन तक बाबर सेवन करें। ग्रहपूर्ण वयस्क मात्रा है। ७ से १० वर्ष के भीतर के बालक को इसकी आधी मात्रा देनी चाहिए और तीन वर्ष से भीतर के शिशु
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श्रडखरबूज
को इसका तिहाई अथवा एक चाय की चम्मच भर देना चाहिए । यदि ऐं न प्रतीत हो जैसा इससे कभी कभी होता है तो शर्करा योजित एनिमा ( वस्ति ) करने से वह दूर हो जाता है ।
मुख्यतः यह केचुश्रा निस्सारक है । कहूदाना ( Tenia) पर इसका कम प्रभाव होता है
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बीज में भी कृमिघ्न प्रभाव होने का वर्णन किया गया है, परन्तु इसके गुण विषयक प्रभावों से भलीभाँति यह परिणाम नहीं निकलता ।
''दक्षिण तथा पश्चिम भारतवर्ष और बङ्गप्रदेश की सभी जाति की स्त्रियों में इसके बीज के श्रार्त्तवप्रवर्तक गुलमें प्रबल विश्वास है । उनकी यहाँ तक है कि यदि गर्भवती श्री इसे मध्यम मात्रा में भी खाए तो गर्भपात अवश्यम्भावी परिणाम होगा । यही पूर्वाग्रह इसके फल खाने के खिलाफ़ है । तो भी पपीता के प्राकथित प्रवर्तक गुणों के प्रमाणभूत घटनाओं की बहुत कमी हैं। ( बीज सशक प्रवर्तक है - इं० मे० मे०) गर्भपात हेतु इसके दूधिया रस का गर्भाशयिकद्वार में पेसरी रूप से स्थानिक उपयोग होता है । यह जमे हुए अल्ब्युम का लयकर्ता है ।
१ इसके पत्र, ६० प्रेन ( ३० रती ) अहिफेन तथा ६० ग्रेन ( ३० रती ) सैंधव - लवण इनको रगड़ कर करक प्रस्तुत करें। इसके स्थानिक उपयोग से गिनी कृमि ( Guineaworm ) नष्ट होती है । 'ले० कर० कॉक्स' ।
एक चाय की चम्मच भर अंडखरबूजे के दुग्ध तथा उतनी ही शर्करा का परस्पर मिलाकर इसकी तीन मात्राएँ बनाकर दैनिक सेवन करने से प्लीहा एवम् यकृत वृद्धि चिकित्सा में उत्तम परिणाम प्राप्त हुए | एबर्स (३० मे० ग० फर० १८७५ ई० ) ।
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फल पुरातन अतिसार में गुणदायक होता है । •. इसका अपक्क फल कोष्ठमृदु कारक तथा मूत्रल है । इसका ताजा दूधिया रस वएर्यलेपन ( Rubifacient ) तथा दद्रु हेतु उत्तम
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