Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 812
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वगन्धा ७७० अश्वगन्धाद्यघृतम् रासायनिक संगठन-विथेनीन (Witha. शोधक रूप से प्रख्यात हैं । अधुना क्यु (Kew) nin.) नामक एक प्रभावात्मक सत्व । यह एक में किए गए हूकर (Sir. J. D, Ilooker) प्रकार का अभिषव ( Fer.nent) है जो उक के परीक्षणानुसार यह निश्चय किया गया है कि पौधे के बीज द्वारा प्राप्त होता है और प्राणिज १ पाउस पुनीर के फल ( Withania रेनेट (Animal remet) से बहुत कुछ coagulans ) का १ क्वार्ट (४० पाउस) समानता रखता है एवं उसकी एक उत्तम प्रति- खौलते हुए जल में क्वाथ कर, इसमें से एक निधि है। ( Tablespoon ful ) उन क्वाथ १ गलन क्वथित करने से यह नष्ट हो जाता है और मद्य उष्ण दुग्ध को लगभग अाध घंटे में जमा सार से अधःक्षेपित होता है एवं इसका उसके देगा (फा० ई०२ भा०)। शुष्क फल में जमाने वाले गुण पर कोई प्रभाव नहीं होता । भी यह गुण है। बीजसे ग्लीसरीन वा साधारण लवण (संधव) के ___ पक्व फल में अंगमईप्रशमन एवं अवसादक तीव्र घोल द्वारा इसका सत्व प्राप्त किया जाता गुण होने का अनुमान किया जाता है । ( ई० है। इन दोनों विधियों द्वारा प्रस्तुत सत्व अल्प मे० प्लां०)। मात्रा में भी तीव्र जमाने का प्रभाव रखता है। अश्वगन्धा घृतम् ashya-gandha-gh. प्रयोगांश-फल, मूल एवं पत्र । ritam-सं० क्ली. असगंध के कषाय या औषध-निर्माण-घृत व तैल आदि। __ कल्क में चौगुना दुग्ध मिला उसमें घृत मिला प्रभाव.-यामक, रसायन, मूत्रल और यह । कर पिकाएँ । जब घृत सिद्ध होजाए तब उतार दुग्ध को जमा देता है। एवं छान कर रक्खें। प्रयोग-सिंध तथा उत्तर पश्चिम भारत एवं ___ गुण-इसके सेवन से वातरोग का नाश अफ़ग़ानिस्तान में यह रेनेट के स्थान में दुग्ध होता है और पुष्ट करते हुए मांस की वृद्धि जमाने के काम पाता है। देशी लोग इसके फल करता है। वंग से० सं० वातरोग-चि०। को थोड़े दुग्ध के साथ रगड़ कर इसको दुग्ध में अश्वगन्धा तैलम ashvagandha-tailam उसे जमाने के लिए मिला देते हैं । डाक्टर -सं० क्ला० वात व्याधि में प्रयुक्त तेल विशेष । स्टॉक्स (१८४६ ) के वर्ण, से पूर्व ऐसा च० द०। प्रयोगाः। प्रतीत होता है कि इस अोर लोगों का कम ध्यान था। अश्वगन्धादि नस्यम् ashva-gandhadinas vam-सं०को० असगन्ध, सैंधव, वच,मधुसार, (नवीन ) फल वामक रूप से भी प्रयुक्त मरिच, पीपल, सोंठौर लहसुन को बकरे के होता है और अल्प मात्रा (शुष्क ) में यह मूत्र में पीस नस्य लेने से नेत्र स्वच्छ होते हैं। पुरातन यकृद्रोगजन्य अजीण ( तथा प्रानाहशूल ) की औषध है। यह मूत्रल एवं रसायन अश्वगन्धाद्य घृतम् ashvagandhadyagh. rjtam-सं० का० (१) अश्वगन्ध के कल्क है । बम्बई में इसको प्रायः काकनज (hysalis alkekengi, Willd.) & 9 ४ भा० को दुग्ध १० भा० में पकाकर बालकों मिलाकर भ्रमकारक बना दिया जाता है। काक को पिलाने से यह उनके बलकी वृद्धि करता है। नज का आयात फारस से होता है और अरबी में व० सं० बालरो०-चि०। उसको काकनज वा हजुल काकनज कहते हैं। (२) असगंध मूल प्रस्थ, दुग्ध २ श्रादक इब्नसीना ने इसको काकमाची(मको )वत् (५१२ तो. ), घृत १ प्रस्थ इनकोकोमल अग्निसे रसायन लिखा है और त्वगरोगों के लिए विशेष पकाएँ । पुनः सोंड, मिर्च, पीपल, दालचीनी, रूपसे लाभदायक लिखा है। उक्त दोनों पौधे रक्त- इलायची, तेजपत्र, नागकेशर, वायविडंग, For Private and Personal Use Only

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