Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 815
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भरवतरः ७७३ अश्वत्थ [स्त्री अश्वतर: ashvatarah-सं० पु. काही अश्वतर ashva tara- हि० संज्ञा पु.) अश्वतरी] (१)अश्वखरज, खच्चर, घोड़ी और गधे से उत्पन्न जीव । खच्चोर घोड़ा-ब० । (A mule or donkey ) सु० अ० ४६ । गुण-इसका मांस वल्य, वृंहण और कफ पित्त कारक है। मद० व०१२। (२) एक प्रकार का सर्प । नाग-राज । अश्वतृणम् ashvatrinam-सं० क्ली० पाषाण मूली । घोड़ाघास-हिं० । उश्बुलखील-अ..। (Collinsonia.) देखे-पृ० ७८३ अश्वत्थः ashvitthah-सं० पु० अश्वत्थ shrattha-हिं० २ज्ञा पु. (प० मु० । सु० सू० ३० अ० न्यग्रोधादिव.), पीपल, पि(पी)पर-हिं०, मह०, गु०, पं०, बम्ब० । फाइकस रेलिजिमोजा ( Ficus religiosa, Linn.)-ले०। दी सेक्रेड ट्री ( The sacred tree ), st organ at ( The peepul tree )-इं०। फिगोर -श्रो पात्रे डेस पैगोडेस Figu-ier ouarbre des pagodes (Ou de Dreu ou Conseils)-फ्रां०। रेलिजि भोजर फीगेनॉम(Religioser Fiegenbaum) -जर.। संस्कृत पर्याय-केशवालयः, चैत्यद्रुः(त्रि०), बोधितरु::, कृष्णावासः (हे), चैत्यवृक्षः (र), नागबन्धुः, देवात्मा, महामः (श), कपीतनः (मे), बोधिद्रुमः, चलदनः, पिप्पलः, कुञ्जराशनः (8), अच्युतावासः, चलपत्रः, पवित्रका, शुभदः, वोधिवृक्षः, याज्ञिकः, गजभक्षकः, श्रीमान्, सीरद्रुमः, विप्रः, मंगल्यः, श्यामलः, गुह्यपुष्पः, सेव्यः, सत्यः, शुचिद्र मः, धनुर्वृतः, गज भक्ष्यः, गजाशनः, क्षीरद्रुमः, बोधिनुः,धर्मवृक्षः,श्रीवृक्षः । प्राशुद् गाछ, अशोथगाछ, अश्वत्थ, अस्वतबं०। मुर्तमश-१०। दरस्त लरज़ॉ, पीपल -फा० । सुद्दी-उ० । अरस, अरश मरम्, अस्वथम्-ता० । राई (वि)चे, कुलुजुब्विचेछु, राई, रैग, रावि, कुल्लरावि, रागी-तै० । रंगी, बस्री, अरली, अरले नेसपथ, रागी, अस्वत्त, अरशेमर, अश्वत्थमर-कना । पिपल, पीपलो - मह । पिम्पल-मह०, को। परली-का। पिम्पल, पिप्लो, पिपुर, पिपुल-बस्ब० । पीपर, भोर-पं० । पिपुल-गु०। हिसार, पीपरदोल। हिसाक सन्तान जाऊ-उड़ि । बोरबर-छा० । पिप्ली-नेपा० । श्रा(अ)लीगो। पेपी-काकु । पोपल को पेडमारवा० । अरशम्मरम् द्रावि०। न.ट-इसका एक छोटा भेद है जिसको । पीपली कहते हैं । इसके पत्र छोटे होते हैं । अश्वत्थ वा वटवर्ग (... O. Urticaceae.) । उत्पत्ति-स्थान-सम्पूर्ण भारतवर्ष और (बंग प्रदेश, मध्य प्रदेश ) हिमालय पाद । __ वानस्पतिक-वर्णन-अश्वत्थ एक रेष्टतम छाया वृक्ष है । पीपल के पक्व फल को पक्षीगण खाकर जब वीट करते हैं तब उसमें सावित बीज निकलते हैं। इनमें जननोपयोगी बीज किसी वृक्ष वा दीवार पर गिर कर मिट्टी का सहारा पाकर अंकुरित हो जाते हैं।। प्रस्तु. प्राचीन गृहों की वीवारों तथा वृक्षों पर भी पीपल के वृक्ष दृष्टिगोचर होते हैं । चैत्र में अश्वत्थ वृक्ष पत्रशून्य होता है और प्रायः ग्रीष्म ऋतु में नवीन पत्रों से सुशोभित होता है। इसके वृक्ष अत्यन्त वि. शाल एवं बहुशाखी होते हैं। पत्र गोल अंडाकार सिरे की ओर लहरदार हृदाकार, पत्रवृन्त दीर्घ एवं क्षीण, पत्राग्रभाग क्रमशः सूचम होता हुमा पति, पत्र का लम्बा होता है। फलकोष (कुण्ड ) कक्षीय, युग्म, वृन्त रहित, संकुचित, मटराकार (वा उससे वृहत्), ग्रीष्म ऋतु में फल लगते और प्रावृट में परिपक्व होते हैं । पक्वावस्था में बैंगनी रंग के होते हैं। पीपल के काटने और तोड़ने से उसमें से एक 'प्रकार का हहेसदार श्वेत रस निर्गत होता है जिसे पीपल का दूध कहते कहते हैं। इसी कारण इसका एक माम "क्षीर. दम" है और इसकी क्षीरी वृक्षों में गणना For Private and Personal Use Only

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