Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 825
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वत्थकम् ७८३ अश्वतृणम् ..ज्वर पाने से पहिले पीपल की दातौन करना | अश्वत्थभित्,-भेदः ashvattha-bhit,-bh- ज्वर को और दाँतों से खून प्राने को रोकता है। । edah-सं०० नन्दी वृक्ष । वालिया पीपर, .... पीपल की लकड़ी का प्याला बनाकर उस . तून-हिं० । भा० पू० १ गा० वरादिव० । प्याले में रात्रिको पानी भर रखें और सवेरे उस . . (Cedrela toona.) ....... . पानी को पिएँ । इससे मस्तिष्क शीतल रहता है, अश्वत्थमर ashvatthamar-कना० अश्वत्थ । . वीर्य गाढ़ा होता है और स्वचा के रोग दूर हो जाते पीपल का पेड़ । ( Ficus religiosa.) हैं। उन प्याले में पानी रखने से. उसके स्वाद में अश्वत्थ वल्कलादि यांग: ashvatthi-va. अन्तर नाजाता है। पानी में पीपल की लकड़ी lkaladi-yogab-सं०पू० पीपल की सूखी - का असर एवं.. स्वाद स्पष्ट मालूम पड़ता है। छाल जला कर उससे पानी बुझा कर पीने से इसमें कुछ समय पर्यन्त दूध रख कर पीने से | प्रबल वमन का नाश होता है। वृ०नि० २० बहुत लाभ होता है। .. . छर्दि। . बहुसपे सर्प-चिकित्सक इसकी कनिष्ठा अंगुली | अश्वत्थ वल्कलादि लौह ashvattha-valk. के इतनी मोटी लकड़ीके एक सिरेको गोल बनाकर alādi-loub-सं० पु. पीपल वृक्ष की छाल, .: एवं घिसकर चिकनाकर ऐसी दो लकड़ियोंको सर्प ... सोंठ, मिर्च, पीपल और मण्डूर इनके चूर्ण को :: दष्ट रोगी के दोनों कानों में १-१ लकड़ी प्रविष्ट गुड़ के साथ सेवन करने से क्षय रोग का नाश कर उससे तरह तरह की बातें पूछ कर विष दूर होता है । वृ०नि० र० क्षय चि०।: करने का ढोंग करते हैं । परमात्मा जाने इसका अश्वत्थ सन्निमा ashrattlha-sannibhā-सं० क्या प्रभाव होता है ! (लेखक) .. स्त्री० देखो-अश्वत्थिा । ... .. पीपल की सूखी लकड़ी और पत्र को जलाकर | अश्वत्था,-थी ashvatthā,-tthi-सं० स्त्री० क्षार-निर्माण-विधि द्वारा इसका क्षार प्रस्तुत करें। (१) क्षुद्र अश्वत्थ वृक्ष। गय अश्वत्थ-बं० । . . प्रयोग-आध पाव पानी में १ मा० इस क्षार रा०नि०व०१। (२)श्रीवल्ली वृक्ष (See को मिलाकर इससे दिन में दोबार कोढ़ क जरूपों -shrivalli) रा०नि०व० (३)सीकाको धोने से वे बहुत शीघ्र अच्छे हो जाते हैं। काई। शीतला। . .. इसके निरन्तर प्रयोग से प्राचीन से प्राचीन कोद अश्वत्थादि प्रक्षालनम् ashvatthādi-prak. एवं फुलवरी (श्वित्र) श्रादि रोग दूर हो जाते हैं। shalanm-सं० क्ली.. पीपल.....पिलइससे उपदंश में भी लाभ होता है। खन, गूलर, बड़ और बेंत के क्वाथ से धोने से अश्वत्थकम् ashvatthakam-सं० क्लीक घाव, सूजन और उपदंश का नाश होता है। मल्लिका पुष्पदल | मल्लिका फुलेर पापड़ी-बं०।। अश्वस्थिका,-थी ashvatthikā,-tthi-सं० (See-Mallika-pushpa. )वै निघः। स्त्री० क्षुद्रपत्र अश्वत्थ वृक्ष । गया अश्वस्थ-बं०। अश्वत्थ पत्र योग ashvattha-patra-yo. पिप्ली-हिं० । अश्वत्थी-मह । हेनरलि-का० । ga-सं० पू० पीपल के पत्तों के अग्रभाग दा संस्कृत पाय-लघुपत्री, पवित्रा, ह्रस्व ... रस १ भाग, बोल : भाग, शहद १२ भाग मिला पत्रिका, पिप्पलीका और वनस्था । ..... कर पीने से रकस्राव और हृदयस्थ संचित रक- गुण-मधुर, कसेली, रक्तपित्तनाशक, विषघ्न विकार दूर होता है । वृ० लि. र० भा०५र० दाहनाशक तथा गर्भिणी स्त्रियों के लिए हितकारी है। रा०नि० व० ११ । . अश्वत्थफनका,-ला ashvattha-phala अश्वतृणमashyatrinain-सं.क्ली. पाषाण मूली, ka-a-सं० स्त्री० वषा हाउबेर-हि। घोड़ा घास-हिं० । कोलिनसोनिया ( Collin. -बं०। लघु शेरणी-मह०। (Juni- sonia.), कॉ० कैनेडेन्सिस (C, Canaperi fructus. ) भा० पू० । भा०। densis)-ले० । ष्टोन स्ट (Stone root) पित्त। .. . . For Private and Personal Use Only

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