Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 833
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमी अष्टपादिका ७६१ अटपादिका ashta-pādika-सं० स्त्री० (१) शरद पाठों श्रष्टमंगल कहलाते हैं। वै० निघः । मल्लिका । काष्टमल्लिका-बं० । रत्ना०। (२) किसी किसी के मत से १-सिंह, २-वृष, ३-नाग, प्रास्फोता, अपराजिता I (Clitorea terna- ४-कलश, ५-पंखा, ६-वैजयंती, ७-भेरी और tea. ) हापर माली--बं० । ५० मु० ८-दीपक ये आठ अष्टमंगल हैं। व०११ । अष्टमंगल घृतम् ashta-mangal-ghritam -सं० क्ली० बाल रोग नाशक घृत विशेष । अष्ट महर ashta-prahar-सं०प० पाठ पहर, एक घृत जो प्राट श्रोषधियों से बनाया जाता श्राउ याम । ( Incessant, the whole | 'day and night.) है। ओषधियों ये हैं-१-वच, २-कूट, ३- ब्राह्मी, अष्टबन्ध्या ashta-bandhva-सं० स्त्री० श्राउ ४-सर्षप, ५-सारिवाँ, ६-सेंधा नमक, ७-पीपल प्रकार की बन्ध्याएँ, बाँझ या अपुत्रवती लिया। १-१ तो०, और ८-घृत = तो०, रक श्रोष. Eight sorts of bandliyas ( chil. धियों का कल्क बना घृत सिद्ध कर पीने से बाdless women )। वे निम्न हैं-(१) लकों की स्मृति, स्रुति और बुद्धि की वृद्धि होतो है और पिशाच, राक्षस, दैत्य बाधा दूर होती काकबन्ध्या, (२) कन्यापत्य, (३) कमली, (४) गलगभी, (५) जन्म बन्ध्या , (६) . है। च. तथा वंग से० सं० बालरोग-चि०। त्रिपक्षी, (७) त्रिमुखी, (८) मृदगर्भा । इनके भा०। रस० र०। अतिरिक्र पाठ प्रकार की और बन्ध्याओं का वर्णन अष्टमधु जाति: ashta-madhu-jatih-स. ब. कल्पद्र.. के प्रणेता ने किया है जो स्त्री० माक्षिक, भ्रामर, चौद्र, पौत्ति(त्रि)क, छात्रक निम्न हैं .पाा , औद्दाल और दाल इत्यादि पाठ प्रकार के मधु । विस्तार के लिए उन उन शब्दों के (१) मृत्वत्स्या . (२) रजोहीना, (२) अन्तर्गत देखो। वकी (३ ) व्यक्रिनी, (५) व्याघ्रिणी, (६) अष्टम नकली पसली ashtama-nakaliशुभ्रती, (७) सजा और (८) स्रवद्गभी । . अष्टवसु ashta-basu-हिं. पु. आठ देव वि pasali-स. स्त्री० ( Eighth false शेष ( The eight deities.) । यथा rib) मांस और उपास्थि की पशुका । . श्राप, ध्रुव, सोम, धव, अनिल, अनल, प्रत्यूप अष्टमानम् ashta-mānam-सं० क्ली. भ्रष्टमान ashta-mana-हिंस और प्रभास । दो प्रसूति=४ पल (=३२ तो०) अर्थात् श्रद्ध अष्टभावः ashra-bhāvah-सं० पु. स्तम्भ, सेर ( Half a seer.)। पाठ मुट्ठी का एक स्वेद, रोमाञ्च, स्वरभंग, वैस्वयं, कम्प, वैवर्य परिमाण । प० प्र० १ ख.। और अश्रुपात ये आठ भाव हैं । वै० निघ०।। | अष्टमिका ashtamika-सं० स्त्री०, हिं. संज्ञा अष्टम ashram-हिं० वि० [सं०] पाठवा ।। स्त्री० तोल चतुष्टय परिमाण, ४ तो० का एक ( The eighth. ) परिमाण | प० । प्राधे पल वा दो कर्ष का अष्ट मंगलः ashta-mangalah-सं० पु. परिमाण । (१) श्वेत मुख, पुच्छ, वक्ष तथा खुर वाला अष्टमी ashtami सं. (हिं० संज्ञा ) श्री. अश्व । हे. च०। जिसका समग्र पाद, पुच्छ, (1) क्षीर काकोली । ( See-rkshira.ki. वक्ष तथा मुख सफ़ेद हो उसे "श्रष्टमंगल" koli.) वै० निघ०। (२) तिथि विशेष । जानना चाहिए : ज० द०३ १० ।--क्ली० पाठ शुक्र और कृष्णपक्ष के भेदसे आठवीं तिथि । पाठे। मंगल द्रव्य वा पदार्थ जैसे-१-ब्राह्मण, २-गो, (The eighth day of the moon.)। ३-अग्नि, ४-स्वर्ण, ५-घृत, ६-सूर्य, ७-अश्व, (३)श्रावणी नाड़ियाँ (Acoustic nerves.) (कहीं कहीं जल लिखा है) तथा ८-नृप ये -त्रि०, वि० आठवीं। For Private and Personal Use Only

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