Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 878
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानतण्डुला अनमः लहाजा । धानका लावा । मे0 । यव । जौ । (Ba. | (२) धर्मशास्त्र के अनुसार वह पुनभू स्त्री rley) प० मु०। C.सने पुनर्विवाह तक पुरुष संयोग न किया हो। "लाजेषु विष्वहिंसिते । यवेऽपिक्वचित्" ।। (३) कर्कट'गी, काकड़ासींगी । (Rhus मे० तत्रिक । कोई बिना टूटे हुए चावल को ___acuminata. ) कहते हैं जो देवताओं की पूजा में चढ़ाया अक्षते-चे-खारaksha te-che-khora-प्रक्षन । जाता है। फा० । सं0 त्रि०, हिं० वि० (१) अत्रण । जिसमें अक्षतलम् aksha-tailam-सं० क्लो० बहेड़ा क्षत या घाव न किया गया हो । (२) अहिं सत । का तेल, विभीतक तैल । बयड़ा बीजेर तेल मे० । -बं०1 (Terminalia belerica (Oil (३) अखंडित | बिना टूटा हुआ । सांग __of-) वा० उ०१३ श्र० । पूर्ण । समूचा। शर० । अक्ष दण्ड ।ksha-dandaअक्षतण्डुला akshatandulā-सं० स्रो० महा , ' महा। अक्षयरः aksha-dhah-सं० पु० शाखोट समंगा क्षुप । रा०नि०व०४।। वृक्ष । शेअोड़ा गाछ-ब। भूरि प्र० । ( Troअक्षतयानि akshata-yoni-हि. वि० [सं०] वृक्ष ___phis aspera.) ( कन्या) जिसका पुरुष से सम्बंध न हुआ हो । श्रत युर aksha-dhuri-हिं. संचा पु'. कुमारी । वर्जिन (Virgin.), वो इन्टैक्या [२०] पहिए की धुरी । ( Virgo-in tacta. )-ई। बाकिरह, अज राज,दोशीज़ह नाबालिग़ह -अ०। दोशीज़ह | अक्षधूर्त:,-तिलः akshr-dhārttah,-rtti-फा० । कुँवारी, कुँवारी औरत-हिं०, उ०।। Ith-सं० प० वृषभ । बैल । पाइ-ब० । (A हिं० सज्ञा स्त्रा० (१) वह कन्या जिसका bull, an ox.) हारा०1 पुरुष से संभोग न हुआ हो । ( २ ) वह कन्या | अक्षन akshana-हिं० संत्रा पु. ( Axoजिसका विवाह हो गया हो पर पति से समागम ___m.) सेल को जो शाखा नाड़ी बन जाती है न हुभा हो। . . उसे प्रक्षन कहते हैं। अक्षतरागःakshata-logah-सं०पू० उपनख | अक्षपाकः aksha-pākah-सं० ए० सचन रोग विशेष। .. लवण । ( Sochal salt ) वै० निघः । लक्षण-वात पित्त कुपित होकर नख के मांस | अक्षपिंडः aksha-pindah-सं०पु. शंखपुष्पी । को पका देते हैं जिससे वेदना और ज्वर पैदा हो ( Andropogon aciculartum.fo जाते हैं। इसरोग को चिप्य, अक्षत वा उपनख निघ। रोग कहते हैं । यथा- "वुर्यारिपत्तानिल' प.कं नख प्रक्षपोड़ः aksha-pidah-सं० पु. (.) मांसे सरुग्ज्वरम्,चिप्यमक्षत--रोगं च विद्यादुपनखं .. श्वेत वुह्वा । श्वेतवुह्वामूल । रसेद्र चि० । च तम् ।"वा० उ०३११० । श्राडूल हाड़ा-बं० । अ०। (२) दुरालभा । ( Alhagi ma. क्षतवीर्य akshata-viryya-हिं० वि० urorum.) सु० चि० ६ ० । [सं०] जिसका वीर्य पात न हुआ हो। जिसने | | अक्षपी(डका)ड़ा akshapi(dak ),-da-सं० स्त्री संसर्ग न किया हो। । स्त्री० (१) काल मेघ । शंखिनी। यवतिक्क । अक्षता akshata-हिं० वि० [सं०] जिसका ( Andropogon paniculata, Ve. पुरुष से संयोग न हुआ हो । es.) रा०नि० व०३ । (२) श्वेत वुह्वा । संज्ञा स्त्री० (१) वह स्त्री जिसका पुरुष सु०। ५० मु०। से संयोग न हुआ हो । अक्षमः akshamah-सं० पु (1) स्थूल For Private and Personal Use Only

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