Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 881
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिलोम.. अक्षीय अक्षिलोम akshi-loma-सं० क्ली० नेत्ररोम, | अक्षीणनामारस:akshinanāma-rasah-स' अक्षिपक्ष्म, बरौंधी । ( Eyelash, Cilia.) पु' स्वेदन तथा पातन किए हुए और सस्कार अक्षिवः akshivali-स० पु. (१) शोभा- से बीजोत्पादित पारे में षोड़शांश सुवर्ण का अन वृक्ष, सहिजन | शजना-बं०। (Guila. जारण करें। इसके पश्चात् १६ गुना गांधक, ndin a or Hyperanthera moru- जारण करें। फिर पारे का चतुर्थांश सुवर्ण और nga.)। (२) मरिच । (Pepper.) रा० १६ वा भाग गंधक डोलकर, जम्भीरी के रस नि० व०७।-क्लीo ( ३ ) समुद्र लवण । अथवा किसी भी खटाई से मर्दित करके टिकड़ी (Sea salt.) watoto बनाएँ। फिर कच्छ पयंत्र में या सोमनाल यंत्र में अक्षिवम akshi-vartma-स0 क्लीo अक्षि. नीचे ऊपर पिट्टी से टूना या तिगना ग धक देकर पचम । ( Eye lash) पिट्टी को बीच में दबाएँ। फिर चूल्हे पर चढ़ा अक्षिविचूर्णितम् akshi-vich unitam-सं0 कर ३ दिन तक मंद मंद अग्नि दें। इस तरह क्ली अपांग दृष्टि । हे० च01 करने से सुवण के साथ पारे की भस्म होगी। अक्षिवैराग्यम् akshi-vairagyam-स उपयुक्र विधि से मारा हुश्रा पारा १ भा०, क्ली० आँख का लाल होना, नेत्र विरकता । कांतपाषाण या इससे निकाला हुअा लोह भस्म "चकोरस्याक्षि वैराग्यम् ।" वा० सू० ७०। १ भाग, मारा हुअा अभ्रक सत्व, ताम्रभस्म एवं अक्षिशूल akshishila-हिं० संज्ञा पु. [स] शुद्ध गंधक दो दो भाग, इन सबको खरल में नेत्र वेदना । आँख का दर्द । ढाल कर तीन दिन तक लगातार मन करें। प्रक्षिशुक्लम akshishuklam--स'० क्ली. फिर इसकी टिकिया बना छाया में शुष्क कर नेत्रका सफेद भाग । शतप० । भूधर यंत्र में करीष की अग्नि दें। फिर इसको अक्षिशीष akshi-shosha-हिं० संज्ञा प.. निकालकर शीशी में रखें। [स. ] नेत्र शुष्कता। मात्रा-१ मा० रस गुडची सत्व तथा योग्यताअक्षिसेचनम् .kshisechanam-स. क्ली० नुसार मुलेठी और बंशलोचन व शहद मिलाकर नेत्रनिस्तोद वा पाश्चोतन अर्थात् परिषेक ।। चाटे तो ४ महीने में पथ्य सेवा के क्षय को इसकी विधि निम्न है: निमूल कर देता है। विधि-रोगी को वातरहित स्थान में बैठा __पथ्य-चावल, गोघृत, तक्र, गेहूँ और जौ । कर बाएँ हाथसे आँख खोल कर सीपी, प्रलंबा वा रस० यो० सा० । रुई के फाहे से दो अंगुल ऊँचे से आँख अक्षीवः akshivah-स० पुं० के तारे पर दस-बारह बूंद डाल दें। तत्पश्चात् शनीवkshiva-Eo सनाuo कोमल वस्त्र से पोंछ कर ग नग ने पानी चेलवर्ति (१)शोभाञ्जन, सहिजन का पेड़ । ( Mori. को भिगोकर धीरे धीरे आँखों में स्वेदन करें। nga pterygosperma) मे• पत्रिका यह श्राश्चोतन वात कफ में किया जाता है रक च० सू०४० कृमिघ्न व०, चि० ३ ० । पित्त में नहीं। वा. सू०२३ १०। (२)महानिम्ब: (Meliaazedarach) अक्षिहुण्डनम् ॥kshihundan m-सं० क्ली० भा० पू० १ भा० । (३) वचिर, वक ।-क्ली० नेत्रव्युदास । मा० नि० विज०र०। (४) सामुद्र लवण, समुद्री नमक। (Sea अक्षीकः akshikah-स० पु० वृक्ष विशेष । salt) पाडा-ब । भा० पू० १भा०। (५) अाउच-बं० । रत्ना० । ( A tree.) मरिच । Bluck pepper (Piper nigr. अक्षीण akshini-हिं० वि० [सं०] (1) जो um)।-त्रि०, हिं०वि० अमत्त । जो मतवाला म न घटे । (२) अविनाशी। हो । चैतन्य । धीर । शांत । For Private and Personal Use Only

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