Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 729
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द Lev दूषित हो जाता है अथवा जो सदैव मांस खाते हैं उनको यह बुद रोग उत्पन्न होता है । यह मांस असाध्य है । साध्य श्रवुदों में भी निम्नलिखित दत्याज्य हैं । यथा-संत्र तं मर्मणि यच्च जातं स्रोतः सुवायच्च भवेदचात्यम् | यज्जायतेऽन्यत् खलु पूर्वजाते ज्ञेयं तदध्यर्बुदम दक्षैः ॥ यद् द्वन्द्वजातं युगपत् क्रमाद्वा द्विरदं तच्च भवेदसाध्यम् । मा० नि० । सु० नि० ११ श्र० । अर्थ - खावयुक्र, मर्मस्थान तथा नासिका आदि छिद्रों में उत्पन्न होने वाले एवं श्रचल असाध्य होते हैं ( प्रथम जिस स्थान में अर्बुद उत्पन्न हुआ हो उसी के ऊपर जो एक दूसरा अर्बुद उत्पन्न हो जाता है उसको श्रध्यबुद कहते हैं । एक साथ दो अवुदि श्रथवा जो क्रमशः एक के पश्चात् दूसरा अर्बुद उत्पन्न हो जाता है उसको द्विखुद कहते हैं, यह असाध्य है ) । दों के न पकने के कारण न पाकमायान्ति कफाधिकत्वान्मेदोऽधिकत्वाच्च विशेषतस्तु । दोष स्थिरत्वाद् ग्रथनाच्चतेषां सर्वा - दान्येव निसर्गतस्तु ॥ मा०नि० । सु०नि० ११ श्र० । अर्थ - कफ की अधिकता से वा विशेषकर मेद की अधिकता से एवं दोषों की स्थिरता से अथवा दोषों के ग्रंथि रूप होने से सब प्रकार के अर्बुद स्वभाव से से ही नहीं पकते । नोट -- यूनानी वैद्यक के मतानुसार अर्बुद के लक्षण आदि विषयक पूर्ण विवेचन के लिए अरबी शब्द सल्ऋह संज्ञा के अन्तर्गत देखें । मेदोवुदको अंगरेजी में फैटी ट्युमर (Fatty tumour ) और अरबी में सलग्रह, दुहूनिय्वह वा शहमिरयह कहते हैं । श्रायुर्वेदीय चिकित्सा के लिए इनके अपन अपने भेदों के अन्तर्गत अवलोकन करें । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रशः अबुद हरो रसः arvvuda-haro-rasah - सं० पु० पारा ( रस सिंदूर ) को चौलाई, विषखपरा, पान, घीकुआर, खिरेटी और गोमूत्र की भावना देकर पान में लपेट कर उसके ऊपर मिट्टी का २ अंगुल मोटा लेप करके सुखाकर एक लघु पुट दें ं । इसके सेवन से अब्बुद नष्ट होता है । र०र० स० २४ अ० । arvvudákárah अदाकारः g'o बहुवार वृक्ष, लसोरा । चालिता गाछ - ब ं० । (Cordia myxa. or C. Latifolia.) बै० निघ० । बुद द्विजः arvvudadrijah सं० पुं० भुंगो, मेदासिंगी | मेढ़ाशिङ्गी ब० । मुरदारशिंग- मह० । (Asclepias geminata) बै० निघ० । अव्युदान्तरिक रेखा arvvudantarik - rekha-सं० त्रो० ( Intertubercular plane. ) वह पड़ी रेखा जो नितंबास्थियों के ऊपर के किनारों (जवन चूड़ा ) के उतारों में से गुजरती हैं । अयुदान्तरिका रेखा arvvudàntarikarekha-सं॰ स्त्री॰ (Intertubercular plane.) रम् arvvuram - सं० क्ली० श्रहुल्य नामक चुप । तड़वडु - काश० | तड़बड़ - मह० । वै० निघ०२ भा० संग्रहणी० चि० तालीशादिचूर्ण | श्रर्शः (स् ) arshah-s-सं० क्ली० संज्ञा पुं० अर्श arsha - हिं" स्वनामाख्यात गुदरोग विशेष, एक रोग जिसमें वातादि दोषों के दूषित होने के कारण गुदा में अनेक प्रकार के मांस के अंकुर उग श्राते हैं जिनको अर्श अथवा बवासीर कहते हैं । ये नाक एवं नेत्रादि में भी उत्पन्न होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इनके निम्न भेद हैं For Private and Personal Use Only (१) वातज, ( २ ) पिसज, (३) कफज, ( ४ ) स्मन्निपातिक, (५) रक्तज और (६) सहज । विस्तार के लिए देखिए - बवासीर ।

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