Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
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अल्सा
अरसा alsá-फा० (१) मरोड़फली, श्रावर्तनो ( Helicteres isora ) | ( २ ) ख़ित्मी { Khitmi )। (३) अजवाइन : Carum Copticum
७२०
अल्सी का तेल alsi-ka-tela - हिं० पु० अलसी तैल, तीसीका तेल, श्रुतसी तैल। ( Linseed oil ).
अल्हू ज ुलू जावो
alhamzul-jávi-o
Dulcam
तेज़ाब लुबान, लोबान का फूल, लोयानिकान् । (Acidum benzoicum). अल्. हलो वल्मुर्र alhalo-valmurra--अ० काकमाची- सं० | मकोय -हिं० । ( ara ) अल्हाज alhája - फा० य (ज) वासा - ६० । दुरालभा, गिरिकर्णिका, यवाससं । ( Alha • gi maurorum, Desc. ) मेमा० । अलहब्बातुल् खिज़ाal-habbátul khizra gafar al-habbatissoudá
- अ० कालाजीरा, मँगरैल-हिं०, ब० । कलौंजी --बस्त्र०। (Nigella sativa, Sibthorp.) श्रवंश avansha - हिं० वि० [सं०] वंशहीन, निपूता, पुत्र, निःसंतान ।
अत्र ava- उप० [सं०] एक उपसर्ग हैं। यह जिस शब्द में लगता है उसमें निम्न लिखित अर्थों की योजना करता है - - ( १ ) निश्चय; जैसे -- अवधारण । (२) श्रनादर; जैसे- श्रवज्ञा, श्रवमान । ( ३ ) ईषत् न्यूनता वा कमी; जैसे
हुन । श्रवघात । ( ४ ) निचाई वा गहराई; जैसे-श्रवतार । श्रवक्षेप | ( ५ ) व्याप्ति; जैसे
अवकाश । अवगाहन ।
श्रव्य० [सं० अपि, प्रा० श्रवि ] और । अवकरः avakarah - सं० पुं० सम्माजनादि निक्षिप्त धूल्यादि ।
पर्याय-सङ्करः ( श्र० ), ( अटी० ), सङ्कारः ( शब्द र० ) । अवकर्षण avakarshana - हिं० संज्ञा पु ं० [सं०] उद्धार, निष्कर्षण, बाहर खींचना ।
अवस्करः,
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红白花
बलपूर्वक किसी पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान में लेजाना । खींच ले जाना । अवकादन् avakadan-काई ( Moss ) । ( २ ) फंगस । श्रथर्व ० । सू० ३७ । १० ।
का० ४ ।
अवकाश_avakash - हिं० संज्ञा पुं० [सं०] ( १ ) अवसर, समय, सुभीता । (opportu nity) विश्रामकाल, खाली वक्र, छुट्टी, फुर्सत । ( Leisure । ( ३ ) स्थान, जगह, ( space.) । ( ४ ) श्राकाश, अंतरिक्ष, शून्य स्थान | ( 2 ) दूरी, अंतर । फासिला । श्रत्रकिरण avakirana - हिं० संज्ञा पुं० [सं०] [वि० श्रवकीर्ण, अवकृष्ट ] बिखेरना । फैलाना । छितराना |
अवकीर्ण avakirna - हिं० वि० [सं० ] (1) फैलाया हुआ । छितराया हुआ । बिखेरा हुआ | ( २ ) ध्वस्त । नष्ट किया हुआ । नष्ट | (३) चूर्ण, चूर चूर किया हुआ । संज्ञा पु ं० ब्रह्मचर्य का नाश | ब्रह्मचारी का स्त्री - संसर्ग द्वारा व्रतभंग । श्रवकीर्ण avakirna - हिं० वि० [सं०] वह ब्रह्मचारी जिसका ब्रह्मचर्य व्रत भंग होगया हो । नष्ट-ब्रह्मचर्य | अबकुञ्चन_avkunchan - हिं० संज्ञा पु ं० [सं०] समेटना | बटोरना । टेढ़ा करना । श्रवकुण्ठन avakuntha - हिं० पु० साहस परित्याग, भीरु होना । श्रवकुन्थनम् avakunthanam - सं० क्ली०
श्रार्त्तनाद |
श्रवकुशः avakaashah-सं० प ु० गोल|ङ गूल बानर । यह पमृग की जाति से है। सु० सू० ४६ श्र० ।
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श्रवकूलनम् avakulanam सं० क्ली० श्रग्नि द्वारा गरम करना, आग पर गरमाना । च० ३० प्रतिसा-चि० । " श्रङ्गारवकुलयेत् । " सु० प्रतिसः- वि० । अवकृष्ट avakrishta - हिं० वि० [सं०] ( १ दूर किया हुआ । निकाला हुआ । ( २ ) निगलित । नीचे उतारा हुआ ।

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