Book Title: Ayurvediya Kosh Part 01
Author(s): Ramjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
Publisher: Vishveshvar Dayaluji Vaidyaraj

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Page 806
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्रुप्रथि खात प्रश्वकञ्चकी रसः . (Lacrimal-gland ) यह ग्रंथि बादाम अश्लानह ashlānah-हिं० मोरशिषा, मोरपंखी । के बराबर होती है और अश्रुग्रंथि-खात में ( Actinopteris Dichotoma, Beरहती है। गुद्दहे दम्इय्यह.-अ० । dd.) अश्रन थि खात ashru-grantbi-khata अश्लाबस ashlabus-5० कायफल, वफल । -हिं० पु० ( Lacrimal gland cavi (Myrica s1 pida. ) by.) नेत्र गुहा की छत ( नेत्रच्छदि फलक) लक) अश्लियह, क्यात्त म ashliyah-kyatum | में कनपुटी की ओर एक गढ़ा होता है। अश्लियह. पातम ashliyah patam अश्रुछिद्र oshru-chhidra-हिं० पु. ( Pun फिर चूका, चाङ्गरी । ( Rimex vesi. ctum lacrimale) अंकुर की शिखर ____carius. ) पर एक छिद्र होता है जिसका नाम अशुछिद्र है। इस छिद्र में से ही होकर अशु आँखों से नासिका | अश्लिष्ट ashlishta-हिं० वि० [सं०] रखेष शून्य । असंबद्ध । अस गत । में जाया करते हैं। अश्लेष ashlesha-हिं०प० श्लेष रहित, प्र. अश्रुनलिका ashrimalika-हिं. स्त्री. ( Lacriral duct.) अश्रु-गाली। णय, असंख्य, अप्रीति, अश्लेषभिन्न, अपरिहास । अश्रुनाली ashrn-nāli-सं० स्त्री० भगन्दर अश्वः ashvah--सं० पु. रोगं । वै० निघ० See-Bhagandara. अश्व ashva-हिं० सज्ञा पु० प्रश्रपातः ashila-pātah सं.पु. घोटक, घोड़ा, हय, तुरंग, वाजि--हिं० । घोड़ा अश्रुपात ashru-pita-हिं संज्ञा पुं० ) -बं०, हिं० । अस्प-फा० । A horse (Equu. (१) घोड़े का एक अशुभ लक्षण विशेष । यह | scaballus, Linn.) चिह(भँवरी. श्रावर्त्त) घोड़े की आँख के नीचेके गुण-घोड़े का मांस उप्ण, वासनाशक, बल. स्थान में होता है। यह अत्यन्त भयावह तथा कारक हलका तथा अधिक सेवन करनेसे पित्त तथा स्वामी के कुल का घातक है । जयद० ३५० दाह जनक होता है । रा०नि०प०१७। बच (२) श्रीसू गिराना | रुदन । रोना। रस युक्र, अग्निवद्धक, कफ तथा पित्त कारक, अश्रुप्रणाली ashru-pranali-सं० पु., हिं० वातनाशक, वृहण, बन्य, चतु के लिए हितकास्त्रो० ( Naso--lacrimal Duct. ) रक, हलका और मधुर है । भा० पू० । घोड़े की आँसुओं की नाली । कनात् दम्हय्यह-अ०।। सवारी वातको प्रकुपित करता, अंगों को स्थिरता अनुवाहिनी ashru.vahini-सं० स्त्री० (La प्रदान करता, बल तथा अग्निवर्द्धक है । ___erimal cannal.) अनलिका | राज । देखो-वाजि । अश्रुश्रीत ashru-shrota-हिं० पु. ( Lacri प्रश्वक: ashrakah-सं० पु. (A spa. mal Duct.) अश्रुप्रणाली। अश्रश ashrusha-१० दरियाई खरगोश । rrow ) कुलिङ्ग पक्षी । चिड़ा । वै० निघः। (A sea rabbit.) See-kulingab. प्रश्रयस्थि ashrvasthi-सं०हिं०स्त्री० यह नाली | अश्वकञ्च की रसः ashva.kanchukira. जैसी एक अस्थि है; आँख से अश्रु इसी अस्थि में sah-सं० प घोड़ागेली रस । योग तथा रहने वाली एक थैली में होकर नासिका के भीतर निर्माण-विधि-शुद्ध पारद, विष, गन्धक, पहुँचते हैं । अशुांसे सम्बन्ध रखने के कारण इस हरताल, सोहागा, सोंठ, मिर्च, पीपल, शुद्ध अस्थि का नाम अश्वस्थि पड़ा है। यह अस्थि जमालगोटा के वीज, हा, बहेड़ा, भाममा, काग़ज़ जैसी पतली और बहुत कोमल होती है। प्रत्येक तुल्य भागलें । इमको चूर्ण कर भाग गरे लेक्रिमल बोन (Lacrimal bone)-ई। के रसमें खरल कर उदद प्रमाण गोलियाँ बनाएँ। आज म दम् ई अ० । उस्तनाँने अश्की-फा०।। यह प्रत्येक रोगोंको दूर करता है । जिस जिस गोष For Private and Personal Use Only

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