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अमलतास
अमलतास
४७३ कालिदास लिखते हैं"प्राकृष्ट हेमद्युति कणि कारम्"।
यूनानी वैद्यकीय मत से प्रकृति-गरमी और सरदी में मतदिल है। जिसका प्रमाण यह है कि इसमें कोई ऐसा स्वाद नहीं पाया जाता है ( इसका स्वाद मधुर और हीक अत्यन्त तीव्र होता है। अतएव इसको | कक्षा प्रथम वा द्वितीय का उष्ण होना चाहिये) जिस हेतु से इसको किसी बलवान कैफियत से संबद्ध किया जाए, और तर है नफ़ो०३। किसी किसी ने १ कक्षामें गरम तर और किसी किसी ने मतदिल (शीतोष्ण) लिखा है। हानिकर्ताप्रामाशय के लिए तथा हृल्लास, मरोड़ और पेचिश उत्पन्न करता है। दर्पघ्र-मस्तगी और अनीतूं से इसके भामाशय पर हानिकर तथा हृलासकारक प्रभावकी निवृत्ति होतीहै। मरोड़ और पेचिश के लिए इसमें रोशन बादाम मिलाकर देना चाहिए । मःज़ तुम कह और जुलाल इमली प्रतिनिधि-इससे तिगुनी द्राक्षा,, तुर्बुद (निशोथ ) और तुर अबीन । मात्रा-१ तो० से ५ या तो० तक । साधारणतः २॥ तो० से ४ तो० तक प्रयुक्त है। ___ गुण कम, प्रयोग-अमलतास उदरीय वा वाक्षीय अन्तर अवयवों के उष्ण शोथों को लाभ पहुँचाता है । क्यों कि यह मृदुकर्ता, विलायक व द्रावक है। इन्हीं प्रभावों के कारण कण्ठस्थ शोथों के लिए मको के पानी के साथ इसका गण्डूष किया जाता है, और इन्हीं कारणों से संधिवात तथा वातरक पर इसका प्रलेप किया जाता है।
यह यान ( कामला ) और यकृद्वेदना को लाभ पहुँचाता और उदर ( कोष्ठ) को मृदु करता और बिना कष्ट के दग्ध पित्त और कफ के विरेक लाता है। गर्भवती स्त्री को भी इसका विरेचन दिया जा सकता है क्यों कि इसमें क्षोम (लजअ), तीचणता, कब्ज़ (धारकत्व) और कपापन जैसी कोई बुरी कैफियत नहीं है जो अन्तरवयवों को हानि पहुँचाए । नफ़ो।
मीर मुहम्मद हुसेन लिखते हैं कि उराम जुलाब होने के लिए अमलतास की फलियों को थोड़ा गरम कर उसका गूदा निकाल थोड़े रोग़न वादाम के साथ मिलाकर प्रयोग करें। यह मुल. त्तिक (द्रावक ) वक्ष के अवरोधों तथा रक्कोमा को लाभप्रद है और बालक तथा स्त्री यहां तक कि गर्मिणी के लिए भी निरापद रेचक है; किंतु इसका अत्यन्त हलका प्रभाव होता है। उपयुक औषध के साथ यह सम्पूर्ण दोपों का शोधक है। उदाहरण स्वरूप एकत्र हुये पित्त को दूर करने के लिये इसको इमली के साथ पिलाना चाहिए। बलग़म तथा सौदा के लिये क्रमशः निशोथ तथा बसक्राइज (कासनी, बर्ग बेद, श्राब शाहतरा) के साथ और प्रान्त्रीयावरोधों को दूर करने के लिए इसको लुभाबदार वस्तु यथा अतसी वा रोग़न बादाम (रीशा ख़ित्मी, बिहीवाना या ईषद गोल के लुआब) के साथ अथवा कोई उपयुक
औषध यथा कासनी के साथ सम्मिलित कर प्रयोग करने की सिफारिश की जाती है। संधिवात एवं वात रक्क आदि के लिए वाह्य रूप से इसका प्रलेप उत्तम होता है । पुष्प एवं पत्र में मुलत्तिफ़ (द्रावक ) गुण का होन। बतलाया जाता है। (किसी किसी ने रेचन गुण का होना भी लिखा है)। पुष्प के गुलकन्द बनाने का भी वर्णन अाया है । ५ से ७ की मात्रा में इसके बीजों के चूर्ण के प्रयोग करने से वमन आते हैं। और यदि फली के ऊपर की छाल, केशर, मिश्री और गुलाबजल के साथ पीसकर दें तो स्त्री को तुरन्त प्रसव हो । छाल और पत्तों को तेल में पीसकर फोड़ा के ऊपर लगाने से लाभ होता है। (म० अ०)
धनिए के जल के साथ इसका गण्डुष खनाल को लाभप्रद है । इसके पत्र सम्पूर्ण शोथों को लय करते हैं। क्वथित करने से अमलतास के गूदे का प्रभाव नष्ट हो जाता है । म. मु०।।
यह पेचिश को नष्ट करता, यकृत के रोध का उद्घाटक और यौन ( कामला) और उष्ण प्रकृति को लाभप्रद है। जिसे एक वर्ष न हुए हो
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