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अरण्येजीरम्, -कम्
cuma aromatica ) की अपेक्षा अधिक शर्करा वा लुनाब होते हैं ।
प्रयोगांश-पाताली धड़ ( Rhizome )
तथा जड़ ।
इतिहास - यद्यपि रॉग्ज़बर्ग ने उक्त पौधे को कमुनार ( Cassumunar) लिखा है, तथापि इस बात में अत्यंत सन्देह प्रतीत होता
कि श्राया इसकी जड़ कभी युरूप भेजी गई है या यह कभी भारत वर्ष में व्यापार की वस्तु रही है। कद्दुमञ्जल वनहरिद्रा का मालाबारी नाम हैं और इसीसे श्रौषध विक्रेताओं को कस्सुमुनार (Cassumunar root) नामक जड़ की प्राप्ति होती है । गंध एवं स्वाद में दोनों जड़ें बहुत समान होती हैं । महरली नाम निसा संस्कृत भाषा का शब्द है । निशा संस्कृत में हरिद्रा को कहते हैं। इससे यह प्रगट होता है कि देहाती लोग इसकी जड़ को वनार्द्रक मूल की प्रतिनिधि रूप से व्यवहार में लाते हैं।
गुणधर्म तथा उपयोग - यह कटु, अम्ल, रुचिकारक, वल्य तथा श्रग्निवद्ध के है । रा० निं० व० ६ ।
इसके प्रभाव तथा उपयोग आर्द्रक के समान हैं । कोंकण में इसे वायुनिःसारक, उशेजक रूप से अतिसार एवं उदरशूल में वर्तते हैं । डाइमा |
इसके अन्य उपयोग हरिद्रावत् हैं । ई० मे० मे० ।
अरण्यजीरम् -कम् aranyajiram, kam -सं० क्ली० वनजीरक, कटुजीरक, जंगली जीरा । बनजीरा - बं० । कडुजीरें मह० । जीरकत्र ते० । ( Wild cumin Seed. ) देखो - जीरा ।
गुण-जंगली जीरा, उष्ण वीर्य, कसेला, कटु, ara कफ स्तंभक तथा व्यविनाशक है। वै० निघ० द्रव्य० गु० ।
- हि०
पुं०
५७६.
अरण्य-तमाल aranya-tamála अरण्य-तम्बाकू aranya-tambákü फुलं, बन तम्बाकू, गीदड़ तम्बाकू, वनतमाल, वनज
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अरण्य तम्बाकू
ताम्रकूट | ग्रेट मुलीन ( Great mullein ), मुलीन ( Mullein ) - इ० । वर्षैस्कम् भैप्सल ( Verbascum Thapsus, Linn.) -ले० | बोइलॉन ब्लैक (Bouillon blanc), मोलीनी ( Molene ) - फ्रां० । वूलर फूल, भूम के धूम, बन तम्बाकू, फ्रास रुक, एकबीर, कडण्ड, फूँटर, खर्गोश, खर्खरुश्रार, स्पिनखआर, गुरगना, करथी, रात्रन्दचीनी, किस्त्री- पं० । अदानुदुब्व ( रीछ कर्ण), माहीज़ह रज ( मत्स्य विष ), सिक्रानुल हुत ( मत्स्य शूकरान ), लबीतुबैदा (श्वेत चुप ) और बुसीर क्ष० । माहीज़ह रह, बुसीर-फा० ( इनि० ) ।
कटुकी वर्ग
( N. O. Scrophularinee ). उत्पत्ति स्थान- शीतोष्ण हिसालय, काश्मीर से भूटान पर्यन्त यूरूप ( ब्रिटेन से पश्चिमात्य ) संयुक्र राज्य ( United states ).
इतिहास - ऐसा प्रतीत होता है कि चिकित्साशास्त्र के संस्कृत लेखकों ने उन पौधे का वर्णन नहीं किया है। अरब निवासी श्रदानुदुब्ब माहीज़ह रज तथा सीकरानुल-हुत आदि नामों से उक्त पौधे का वर्णन करते हैं । अर्वाचीन अरबी ( भाषा) में इसे लबीदतुल्बैदा वा बुसीर कहते हैं ।
मुलीन ( Mullein ) का फ़ारसी नाम माहीज़ह रह तथा बुसीर है । इख़्तियारात में हाजी जैन ने इसका स्पष्ट वर्णन किया है । वानस्पतिक - विवरण - पत्र, मूल-पत्र ६ से १८ इंच लम्बे, प्रकाण्ड (धड़) पत्र श्रायताकार; ऊर्ध्वपत्र छोटे नुकीले, डंठल रहित (वृन्त शून्य ) न्यूनाधिक दंष्ट्राकार ( लहरदार ) तथा सफेदी मायल चमकीले ( श्वेताभ ) एवं कोमल रोमों से घनाच्छादित होते हैं । स्वाद लुनाबी कुछ कुछ तिक्र, गंध ताजा होनेपर यह बात दूर होजाती है ।
इसके पुष्प ६ से १० इंच लम्बी बालियों पर लगे होते हैं। केवल पुष्पाभ्यन्तर कोष ( पुष्प दल ) एकत्रित किए जाते हैं। इसकी चौड़ाई (ब्यास) 2 से 3 इंच तथा लम्बाई १ इंच होती
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