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राजनी
धारीविहीन मांसतन्तु । ( Unstriped muscle fibre. )
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श्रराड़ जाना arára jana - हिं० क्रि० श्र० ( १ ) गर्भपात हो जाना, बच्चा फेंक देना | गर्भ का गिर जाना | लड़ाना |
जीवन को नाश
नोट- इस शब्द का व्यवहार प्रायः पशुओं ही के लिए होता है, जैसे- गाय अड़गई । अराति aráti-सं० पु. ० शत्रु, दुश्मन । श्ररातिम् aratim-- सं० क्लो० करने वाले रोग । श्रथर्व ० । अरादीस ãaradisa - ० अस्थि-संधि, हड्डियों के जोड़ । मुफ़ासिल उस्तख़ाँ - अ० । बोन जॉइस्ट ( Bone joint ) - इं० ।
अराब ãarába-अ० सन, शण । (Crotalariajuncea.)
श्रराय सुन्ना aaráyasannila ऋ० बिश्नीन, नीलोफर के समान एक बूटी है
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अरार āa1ára--अ ( १ ) उक़ह वान, बाबूनह गाव ( Parthenium ) | ( २ ) जरूर See-zaarúra.
अरारह, ãarárah - अ० वह स्त्री जो केवल लड़के प्रसव करे अर्थात् वह जिसके केवल लड़के उत्पन्न हो ।
श्ररारा arárá हिं० पु० ददोड़ा, दरदरा | अरारि -
arari, - 11 - हिं० स्त्री० करंजिया । संस्कृत पर्याय - उदकीर्यः, षड्ग्रंथा, हस्तिवारुणी, मर्कटी, वायसी, करंजी और करभंजिका । थोर करंज- मह० ।
विवरण - यह उदकीर्य नामक करंज का ही एक भेद है। इसके बड़े बड़े वृक्ष वन में होते हैं । पत्ते पाकर पत्र के समान गोल होते और ऊपर का भाग चमकदार होता है । फल भी नीले नीले झुमकदार लगते हैं; पत्तों में दुर्गन्ध श्राती है ।
गुणधर्म - यह करंज वीर्यस्तम्भक, कड़वा, कसैला, पाक में चरपरा, उष्ण वीर्य और वमन, पित्त, बवासीर, कृमि, कोढ़ तथा प्रमेह को नष्ट करता है । भा० प्र० खं० ।
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家で海
श्ररारी arari - हिं० स्त्री० करञ्ज । (Pongamia glabra)
श्ररारूट arárúta-हिं० संज्ञा पुं०, ब०, बस्ब० [ ० ऐरांरूट ] ( १ ) आरारोट । मेरण्टा ( Maranta ) - ले० | ऐरो रूट ( Arrow root ), वेस्ट इण्डियन ऐरांरूट ( West Indian arrowroot ) - इं० । विलायती तीखुर - हिं० । कुश्रमउ-ता० कुवे हित्त-कना० | कुवा - मल० । पेन बंवा बर० श्रारारूट- को० । कवा हरिद्रा वर्ग
(N. O. Scitamineœ) नॉट ऑफिशल ( Not official. ) उत्पत्ति स्थान -- यह एक भाँति का श्वेतसार जो मेरा रुण्डीनेसिया ( Maranta Arundinacia ) नामक वनस्पति की जड़ से प्राप्त होता है । यह वनस्पति पूर्वी भारती द्वीप, बर्मियोडा और बाज़ी में उत्पन्न होती | अब पूर्वी बंगाल, संयुक्रप्रांत और मदरास में इसकी कृषि होती है ।
वानस्पतिक वर्णन च इतिहास -
एक पौधा जो अमेरिका से हिंदुस्तान में श्राया है। गरमी के दिनों में दो दो फुट की दूरी पर इसके कंद गाड़े जाते हैं । इसके लिए अच्छी दोमट और बलुई ज़मीन चाहिए। यह अगस्त से फूलने लगता है और जनवरी फरवरी में तैयार हो जाता है । जब इसके पत्ते मड़ने लगते हैं, तब यह पक्का समझा जाता है और इसकी जड़ खोदली जाती है । खोदने पर भी इसकी जड़ रह जाती हैं। इससे जहाँ यह एक बार लगाया गया, वहाँ से इसका उच्छिन्न करना कठिन होजाता है।
निर्माण क्रम -- इस वनस्पति की जड़को पानी में खूब धोकर और स्वच्छ करके जल में पीसते पुनः उसे मलकर छानते छोड़ते हैं । इस प्रकार जाता है।
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और एक ओर रख अरारुट श्रर्धः क्षेपित हो
लक्षण - यह एक हलका श्वेत वर्ण का चूर्ण है। जिसमें किसी प्रकार की मां गंध वा स्वाद