Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana

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Page 14
________________ -- - 1 । प्रत्येक नमोमां, प्रत्येक धमनीमां अने प्रत्येक हृदय : स्पंदनमा अभिव्यक्त थती हती, ते बे महारथीओर्नु कीर्तन अमारे माटे क्यारे सफल थशे ? अमारामां एवी महाप्राणताअन साधना शक्ति क्यारे आवश? शास्त्रोदधि मंथन करी सुधर्मना सुंदर रत्नो श्रीयशोविजय सिवाय अन्य कोण शोधीने अर्की शकत? महाअभिमानीओना अंतःकरणने पीगलाववा प्रसंगोपात प्रखर किरणो कोण प्रसारी शकत ? भारतवर्षना मध्यकालना जैन धर्मोद्धारकोनी संख्या नजीवी छे, श्रीयशोविजय अने विनयविजय, ए सं. ख्यामां अग्रस्थान लइ शकेछ । अगणित कष्ट परंपराओने आलिंगन आपी, क्षण भंगुर मिथ्या अपवादोनी सामे अट्टहास्य करीजेमणे शासननोप्रभाव देश विदेशमा विस्तार्यो, जेमनी अगाध बुद्धि, शक्ति अने आत्म संपत्तिनुं विरोधीयो पण गुणगान करेछे, ते श्रीयशोविजय तथा विनयविजय जेवा धुरंधर उपाध्यायो माटे कोण मगरूर न थाय ? जैन समाज एवा महा पुरुषसिंहो माटे यथार्थ गर्व लइ शकेछ, मात्र तमना पगले प्रवर्तवानुं बल कोइ दर्शावी शकतुं नथी । दर्शावछे तो तेथी सिद्धि कोई मेलवी शकतुं नथी। जैन समाजनुं एज दुर्दैव छ।जैन इति हासरूपी आकाश श्रीयशोविजय अने विनयविज2) य जेवा तेजस्वी नक्षत्रोथी परिव्याप्त छ, जैन प्रजा ते 2

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