Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
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में थयो, परंपरामा उत्तरेलो आपनो पुण्यप्रभाव हजी
क्षीण नथी थयो । आपना शिष्यो, आपना अनुयायिओ, आपना प्रशंसको, आपना पमले चाली यथाशक्ति अज्ञान तिमिर अजवालेछ, जगतनुं कल्याण साधेछ । विशेष शुं कहीए?आपना जवाथी जैन शासननी एक उपयोगी स्तंभ टुटी पड्योछे, अमार प्रतापी दिनकर आथम्यो छ। गुरुदेव : पुनः आपनी आत्मविभूतिनी प्रोज्ज्वल चिणगारीओ आ मर्त्यभूमि उपर प्रेरो, जैन शासनने जयवंतु करो।।
कोइ कहेशो के जैन भारतीना भुवनमां आईं तिमिर क्यारथी प्रसयु? कोइ कहेशो के जैन साहित्य अने न्यायनो कल्पतरु क्यारथी करमावा लाग्यो ? इतिहास साक्षी पूरेछ, अभ्यासीओ समर्थन करेछे के श्रीयशोविजयरूपी.न्यायनो दिवाकर अने साहित्यनी विविध शाखाओने हृदयनो रस पाई उछेरनार माली सीधावतांशासनमा शून्यताछवाइ छ। जेमणे विद्याप्राप्ति अर्थे देशत्याग करी,बेशपरिवर्तन करी, दुश्मनाना चरणमांबेसी अध्ययन कर्यु हतु,जे. मणे चार वर्ष पर्यंत काशीवास सेवी कठोर संयम. नियमनो प्रत्येक पगले परिचय आप्यो हतो, जैनविरोधी ब्राह्मण पंडितो पण जेमनी अलौकिक गुणा 7. वली उपर मुग्ध थया हता, ते श्रीयशोविजय अने ( विनयविजय क्या? जैन शासननी दाझ जेमनी

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