Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana

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Page 16
________________ * रसमूर्ति मुनिओनी सरल, सुंदर अने भाववाही संगीतमयी वाणी सांभलवी कोने न गमे १ भधिकजनोना हृद्य-कमलने प्रफुल्लित करनारी पुरातन छतां चिर नवीन लागती वाणी सुधा आ ग्रन्थमां शब्दांकित करी ए पूज्य साहित्य महारथीओना चरणमा शिर नमावीए छीए। ___ एक विशेष उल्लेख लिपिबद्ध करवानुं प्रलोभन संयममांराखी शकता नथी। आ उपकारक ग्रंथ प्रकट करवामां बाबू सुमेरमलजीनो असाधारण उत्साह हतो । ए महाशयनेज आग्रंथप्रकाशननुं सर्वमान आपीए तो अयोग्य नथी । तेमनी धर्मकरणी, इतिवृत्त छापाना देदीप्यमान अक्षरे हजी बहार आव्यु नथी । एवा सहृदय पुरुषो एवी इच्छा पण राखतानथी । परंतु जगतने एवा निर्मानी सहायको अने उत्तेजकोनी जेटली जरुर छे. तेटली आडंबर प्रिय मिथ्याकीर्तिनी सेवकोनी नथी, एम कहीए तो शुं खोटुं छे ? ___ संवत् १८६६ मा आचार्य महाराज श्रीविजयकमल सूरिजी तथा उपाध्यायजी श्रीवीरविजयजी महाराजने साथेलइजेमणेजेसलमेरनो संघकहाड्यो हतो। ए निमित्त जेमणे लगभग पांच सहस्र रुपीयानो सद्व्यय करी हृदयनी उदारतानो परिचय र 2 आप्यो हेतो, जेमनी तीर्थयात्राओना प्रसंगो पण ।

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