Book Title: Atmanand Stavanavali
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Babu Saremal Surana
View full book text
________________
( ४ )
संपत्ति, के नथी आत्म संपत्ति । आपनीज संपत्ति आपने अर्पिए तो? आपनांज स्तवनो, आपनांज पद्यो अने आपनीज भावनाओनो स्वर्गीय पुष्पहार आपना कंठमां आरोपीए तो? आपना अवतरणथी अमारो समाज सौभाग्यशाली बन्यो छे, आपनी निर्मल बुद्धि शक्तिना विद्युत चमकाराओए भूतलना सर्वश्रेष्ठ पंडितोने आश्चर्य चकित बनाव्याछे । अत्यारे कई देवभूमि आपना अस्तित्वथी अहोभाग्य बनी छे ते अमे नथी जाणता । मात्र एटलं जाणीए छीए के आपना जन्मोत्सव समये जे अमरोए स्वर्गमां विजयी जैन शासननी विजयध्वजा फरकावी हती, जे देवोए अलक्षमां रहो अदृश्यपणे पुष्पवृष्टि करी हती, ते देवो आपनो सहवास पामी कृतार्थ
थयाछे । जैन समाज आपना देह विलयथी चोधार 1 आंसु वरसावेळे । जे समाजमां आपे एक काले सदुपेदशनो प्रवाह वहेवडाव्यो हतो, अने जे शासन उद्यानने फल फुल कुसुमित कर्तुं हतुं, ते उद्यान आजे शुष्कवत् बनी गयोछे । पुनः मेघ मल्हार गाइ नवा मेघ कोण आणशे ? अमारा खाली खोखाओमां आत्मतेज कोण पूरशे ? आ हिंदभूमि पुनः आत्मारामजी समा केशरी सिंहोथी क्यारे गर्जित थशे ? एटलं सद्भाग्य छे के आपनां पदचिन्हो हजी लुप्त नधी थयां, आपे प्रबोधेलो मार्ग हजी धुलीधुसरित नथी

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 311