Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 9
________________ संपादकीय वर्तमान का वातायन विस्फारित हैं नयन उभरता है अतीत प्रसृत है अनागत स्मृतियों और कल्पनाओं का गहन वन अवस्थित है मानव-मन देखता है कभी जीवन का उत्तरायन और कभी दक्षिणायन। व्यक्ति जितना देखता है अतीत उतना कहां देख पाता है अनागत सुदूर अतीत तक पहुंचती है दृष्टि अज्ञात रह जाती है कल की सृष्टि इसीलिए अतीत की गौरव-गाथा वह रहता है गाता, गुनगुनाता बसाता है स्मृतियों का संसार जिनसे जुड़ा था जीवन का तारऐसे थे वे दुर्लभ क्षण ऐसे थे वे सजीव पल ऐसे थे वे व्यक्ति देता है अभिव्यक्ति जीया हुआ हर पल बीता हुआ हर कल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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