Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 7
________________ प्रस्तुति 1 अध्यात्म की अनुभूति उस पुष्प का सौरभ है, जिसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य की विभाजक रेखा नहीं है । जो कालातीत होता है, उसमें फिर भेद की कल्पना कैसी? आत्मा अस्तित्व है और अस्तित्व की अनुभूति परम सत्य है। परम सत्य के वेदी पर बैठकर जो अनुभव किया जाता है, वही वास्तव में अमिट होता है । उसमें मिटने वाली रेखा का निर्माण करने वाले बिन्दु नहीं होते । अध्यात्म की वेदी वह वेदी नहीं है, जिस पर एक ही बैठ सके, दूसरे के लिए अवकाश न हो। यह वह आस्पद है, जहां एक के स्थान पर हजार बैठ सकते हैं और हजार में एक का स्थान हो सकता है। 1 मैंने अध्यात्म का जीवन जीया है । क्यों जीया ? यह अव्याकृत है अनिर्वचनीय को वचन देने की आवश्यकता नहीं होती । व्यवहार का जगत् व्याकरणशून्य नहीं है। उसमें पृष्ट व्याकरण और अपृष्ट व्याकरण - दोनों चलते हैं । कभी-कभी मैंने पृष्ट व्याकरण का प्रयोग किया है और कभी अपृष्ट व्याकरण का । प्रस्तुत पुस्तक में ये दोनों व्याकरण उपलब्ध हैं। जब मैं चालीस वर्ष का हुआ, मैंने जीवन का सिंहावलोकन किया । दीक्षा के पचासवें वर्ष में मैंने अपने आपको समझने का और अधिक प्रयत्न किया। हर घटना के प्रति जागरूक रहने का मुझे मंत्र मिला। शुभ घटना और अशुभ घटना को मैंने मौन के आलोक में पढ़ा। इस क्षेत्र में अभिव्यक्ति को अनिवार्य नहीं माना । क्रिया में अधिक विश्वास रहा, प्रतिक्रिया में नहीं अथवा बहुत कम । इस क्रिया ने ही गण और गणपति श्री तुलसी के प्रति मेरी एकात्मकता को अभंग बनाए रखा। उस अभंगता के स्वयंभू साक्ष्य हैं - महाप्रज्ञ का अलंकरण, युवाचार्य पद की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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