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में असंख्यात जीव मानने लगा है और इसीलिए आगम के अपकाया की मान्यता सही है, एक भ्रामक और अश्रद्धा पैदा करने वाला तर्क है। हाँ, इतने त्रसकाय के जीवों के आधार पर यह राय दे सकते हैं कि पानी को छान कर पीयें।
5. यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यदि बुजुर्ग लोग धर्म को वैज्ञानिक मानते हैं, तो फिर विज्ञान से ऐसा मनवाने का, क्यों नहीं कोई प्रयास किया गया? क्यों कोई व्यक्ति, समाज के इस प्रमाद को तोड़ने में सफल नहीं हुआ ? अतः जैनी लोग इतना ही कह सकते हैं कि आगमानुसार पानी भी एक स्थावर काय का जीव होता है।
ब) वैज्ञानिक शोध के प्रयास
सन् 2003 में यह समझने का वैज्ञानिक प्रयास शुरु हुआ कि पानी का ऐसा जीव किस प्रकार का हो सकता है, जिसकी पानी ही काया हो। प्रश्न था कि गर्म करने से या धोवन बनाने से कैसे और क्यों निर्जीव हो जाता है ? कुछ समय बाद यह फिर से जिंदा या संचित कैसे हो जाता है ?
सतत् प्रयास व प्रयोगों द्वारा इन सबकी वैज्ञानिकता ढूंढ़ते-ढूंढ़ते 7 साल बाद यह स्थिति तो आ गई है कि अब जैन समाज, विज्ञान को उसकी भाषा में ही यह बता सकता है कि अपकाय का जीव किस प्रकार का होता है ? यानि उसकी संरचना किस प्रकार की है, कैसे जीवित रहता है आदि। अब तो यंत्रों के माध्यम से यह बताना भी संभव हो गया है कि कोई पानी का नमूना अचित्त है या सचित्त है ।
पानी के जीव का जो प्रतिरूप तैयार किया गया तथा जो परिकल्पना (hypothesis) रखी गई थी, उसका स्वतंत्र रूप से प्रमाणीकरण कराने का भी प्रयास किया गया। इसके लिए एक अन्य वैज्ञानिक की सहायता लेकर, प्रयोगों का पुनरावर्तन कराया गया। इस साल (सन् 2010), उनके द्वारा भेजे फोटोग्राफ्स भी, उपरोक्त सिद्धांत को अभिपुष्ट (validate) करते हैं।
अतः आगम सम्मत जीवन की एक नूतन अवधारणा से विज्ञान को अवगत कराया जा सकता है। हो सकता है कि जैन सिद्धांत की यह प्ररूपणा, विज्ञान को, एक बड़ी क्रांतिकारी देन सिद्ध हो।
स) यह प्रश्न भी कई बार उठाया जाता है कि
* जल कोई एकेन्द्रिय जीव होता है या नहीं, यह जानकर क्या करेंगे ?
* इस ज्ञान से मानव समाज को क्या फायदा होगा ?
i) इसका उत्तर ढूंढने के पूर्व देखते हैं कि वनस्पति जीव है या नहीं, यह 100 वर्ष पूर्व जानकर क्या फायदा हुआ ?
1. इससे एक पूरा जैव - विज्ञान 'कोषाणु-आधारित' वनस्पति शास्त्र विकसित हुआ ।
2. खेती की पैदावार में फायदा हुआ।
3. आनुवांशिक परिवर्तित (पारजीनी) पैदावार विकसित हुई।
ii) उसी प्रकार यदि जल कोषाणु की वैज्ञानिक संरचना मालूम हो जाये, यानि
1. उसकी संरचना कब और कैसे टूटती है और कैसे बनती है ?
2. जीवित पानी या अचित्त पानी के उपयोग में लेने से हमारी शारीरिक रचना और चयापचय
में क्या फर्क पड़ता है ?
3. इससे हमारे शरीर अथवा मन पर क्या क्या प्रभाव पड़ते है ?
यह सब मालूम हो जाने पर उसको मानव (manipulate) जा सकता है।
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समाज के हित में आवश्यकतानुसार सुधारा
अर्हत् वचन, 24 (1), 2012