Book Title: Arhat Vachan 2012 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 28
________________ (ऑक्सीजन) के आयन/मूलक जो इस ट्यूब में प्रवेश कर दूसरी तरफ से बाहर निकल जाते है। इनका संचलन/परिवहन इतना आसानी से होता है, जैसे कि वे भारहीन फोटोन के तरह के कण हो। अपनी गति के द्वारा वे एक अलग प्रकार का विद्युत-ऊर्जा क्षेत्र (होल्स क्षेत्र) पैदा करते रहते हैं। कोषाणु की ऊर्जा, इन मूलकों को एक सक्रिय संतुलन में रखती है। अपने में संचित ऊर्जा को मांग होने पर यह कोषाणु उसे उपलब्ध कराने में समर्थ होता है। हाल की शोध से, फ्रांस व कोरिया में यह पता लगा है कि इन कोषाणुओं में 'स्मृति' भी होती है। कुछ अन्य प्रयोगों से हमने यह भी पाया है कि इन कोशिकाओं को प्रशिक्षित किया जा सकता है तथा बाद में ये अपनी स्मृति को आवश्यकता होने पर काम में ले लेते हैं। यह निष्कर्ष होम्योपैथी के लिए एक बहुत महत्त्व की खोज है। 3. जल जीव होने का प्रमाण : a) होम्योपैथी की क्रियाएँ और प्रभाव - इस पद्धति में दवा का मूल अर्क, अपनी विभिन्न प्रकम्पन गुण और ऊर्जा जल कोशिकाओं के नेटवर्क पर ट्रान्सफर (अंतरण) करके बाहर निकल आता है। यही जीवित कोषाणु मनुष्य के शरीर में जाकर, वहां के कोषाणुओं के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। इस प्रक्रिया से जीन्स के संकेत नियमावली और निर्देश बदले जा सकते है। जीवित नेनो ट्यूब की बनावट इतनी मजबूत होती है कि संस्कारित होने के बाद ये ब्राउनियन मोशन से अप्रभावित रहती है । b) पानी को निर्जीव बनाने की विधियां और काल मर्यादा - साधारण पीने का पानी या तो उबालने से या उसमें राख जैसे विजातीय तत्त्व घोलने से वो अचित्त बन जाता है । उबालने से पानी का शरीर टूट कर बिखर जाता है तथा उसमें घुली हुई हवा भी बाहर निकल जाती है। राख आदि के घोलने से पानी के शरीर के छिद्र बंद हो जाते है, जिससे वह श्वासन ले पाने के कारण निर्जीव । अचित्त बन जाता है। पानी जब ठंडा हो जाता है तो उसमें हवा फिर से घुल जाती है तथा उसका शरीर भी वापिस जुड़कर उपयुक्त योनि बन जाता है । मौसम के अनुसार उबाला हुआ पानी कुछ घंटों बाद फिर से सचित्त बन सकता है । यानि निर्जीव अवस्था में बने रहने की एक न्यूनतम समय सीमा होती है । यह 'परिकल्पना' बाद के प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुकी है। c) आभामंडलीय फोटोग्राफी में सजीव/निर्जीव अवस्था का पानी: मुम्बई और अहमदाबाद के किये गये हमारे परीक्षणों में यह भी देखा गया है कि पानी को उबालने से या उसमें राख पाउडर घोलने से (धोवन पानी) पानी का आभामंडल बदल जाता है। आभामंडल के फोटो खींचने से (किर्लियन फोटोग्राफी) जीवित और निर्जीव पानी में स्पष्ट फर्क नजर आता है । आश्चर्य तब होता है, जब 7-10 घंटों के बाद, निर्जीव (उबाला पानी) पानी का आभामंडल, फिर से सजीव पानी की तरह का आभामंडल बन जाता है । यानि जैन शास्त्रों में दी गई पानी की काल मर्यादा सही सिद्ध होती है। iv) निर्जीव पानी पीने के फायदे : 1. 10 लीटर पानी में 50 ग्राम गोबर की राख घोलने से अच्छा अचित्त धोवन बन जाता है। 24 मिनट बाद निथार और छानकर, उसे पीने के काम में लिया जा सकता है। 2. राख से अभिभूत पानी की PH संख्या 7 से ज्यादा (यानि क्षारीय) होती है। इससे शरीर में जमा अम्लीय कचरा साफ करने में मदद मिलती है। 3. राख से उपचारित पानी ज्यादा शुद्ध और पीने लायक पाया गया। अर्हत् वचन, 24 (1), 2012

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