Book Title: Arhat Vachan 2012 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 90
________________ श्री अ. भा. साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर द्वारा विगत कई वर्षों से उत्कृष्ट साहित्य पर स्व. श्री प्रदीपकुमार रामपुरिया स्मृति साहित्य पुरस्कार प्रदान किया जाता रहा है। वर्ष 2011 हेतु साहित्य पुरस्कार प्रविष्टि सादर आमंत्रित है। यह साहित्य पुरस्कार जैन धर्म, दर्शन, इतिहास, कला एवं संस्कृति तथा जैन साहित्य, काव्य कला, निबंध, नाटक, संस्मरण एवं जीवनी आदि के संबंध में लिखित मौलिक ग्रंथ पर दिया जाता है। चूंकि यह वर्ष संघ का स्वर्ण जयंती वर्ष है अतः इस बार यह पुरस्कार रु. 51 हजार नकद के स्थान पर रु.1,00,000 नकद, शॉल, श्रीफल व प्रशस्ति पत्र अर्पित किया जाता निश्चित किया है । 1 2. 3. 4. 5. 6. श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर द्वारा प्रदत्त स्व. श्री प्रदीपकुमार रामपुरिया स्मृति साहित्य पुरस्कार हेतु प्रविष्टियां आमंत्रित 7. पुरस्कार चयन के लिये निर्धारित नियम निम्नानुसार हैं - अन्य संस्थाओं द्वारा पूर्व में पुरस्कृत कृति पर यह पुरस्कार नहीं दिया जावेगा । पुरस्कार हेतु प्रकाशित / अप्रकाशित (पाण्डुलिपि) दोनों प्रकार की कृतियां निर्धारित आवेदन पत्र के साथ 26 जनवरी 2012 से पूर्व प्रस्तुत की जा सकती हैं। प्रकाशित कृति का प्रकाशन वर्ष 2004 से 2011 के मध्य होना चाहिये । पुरस्कार मूल्यांकन के लिये कृति की मुद्रित 4 प्रतियां एवं पाण्डुलिपि की 1 प्रति निःशुल्क भेजनी होगी । कृतियां पुनः नहीं लौटाई जावेगी । प्रकाशित कृति (पाण्डुलिपि) की प्रति स्पष्ट टंकण की हुई अथवा हस्तलिखित सुवाच्य एवं जिल्द बंधी होनी चाहिये । पुरस्कार हेतु प्रतिभागी विद्वानों के लिये यह आवश्यक होगा कि वे कृति के संबंध में स्वयं की कृति होने एवं इसके मौलिक होने का प्रमाण पत्र कृति के साथ भेजें । आवेदन पत्र मंगवाने एवं पुरस्कार प्रतियोगिता हेतु कृति भेजने का पता निम्न रहेगाश्री पीरदान पारख, संयोजक स्व. श्री प्रदीपकुमार रामपुरिया स्मृति साहित्य पुरस्कार द्वारा श्री अ. भा. सा. जैन संघ, समता भवन, आचार्य श्री नानेश मार्ग, श्री जैन पी. जी. कॉलेज के सामने, नोखा रोड, गंगाशहर बीकानेर 334401 (राज.)। निःशुल्क प्राप्त करें श्री जयचन्दजी छाबड़ा कृत 'भक्तामर स्तोत्र भाषा वचनिका' प्रत्येक श्लोक पर तथा कल्याणकों पर चित्र, समीक्षात्मक टिप्पणी के साथ गत वर्ष सन्मति ट्रस्ट ने प्रकाशित की थी। जो ऐतिहासिकता लिए हुए है । भक्तामर स्त्रोत का अपने ढंग का पहला अनूठा प्रकाशन है। कुछ प्रतियां शेष रह गई है। मुनियों, त्यागियों, शोध संस्थानों, पुस्तकालयों, स्वाध्याय प्रेमियों में ट्रस्ट निशुल्क वितरण करना चाहता है। जिन्हें चाहिए एक पोस्टकार्ड में अपना नाम, पता, पिन नं., फोन नं., आदि लिखकर निम्न पते पर भेज दे । - सन्मति ट्रस्ट, ए-18, संजय मेन्शन, 2 माला, 448 कालबादेवी रोड, भांगवाडी, मुम्बई 400002 अर्हत् वचन 24 (1), 2012 . 90

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