Book Title: Arhat Vachan 2012 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी में व्याख्यान भगवान महावीर का वर्तमान समाज को अवदान वाराणसी स्थित पार्श्वनाथ विद्यापीठ में जैन विश्व भारती-लाडनूं से पधारी विदुषी समणी शारदाप्रज्ञा जी का 'भगवान् महावीर का वर्तमान समाज को अवदान' विषय पर व्याख्यान हुआ। भगवान महावीर ने लोक तत्व, उपभोग - परिभोग परिग्रह का परिमाणव्रत दिया जिसके पालन से सामाजिक विषमता का सर्वथा अंत हो जाएगा। नक्सलवाद आदि समस्याओं का अंत हो जाएगा। महावीर का धर्म व्यक्तिनिष्ठ है। व्यक्ति के कल्याण से मानव कल्याण का सिद्धांत सम्भव है। महावीर ने ईश्वर के स्थान पर मनुष्य की प्रतिष्ठा की। आत्मा अपने पुरुषार्थ से उच्चतम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है। महावीर ने भाग्यवाद को पुरुषार्थवाद में बदल दिया। भगवान् महावीर ने मन, वचन एवं काय की प्रवृत्ति को संयमित करने का उपदेश दिया। भगवान महावीर ने त्याग को पूज्य बताया, ऋद्धि और समृद्धि को नहीं। जैन शासन में सामाजिक आधार, जाति-पांति के आधार पर कोई भेद नहीं। वेश को प्रमुखता न देकर इन्द्रिय विजय को प्रमुखता दी। साध्य, साधन की शुद्धता पर बल दिया। अहिंसा के प्रायोगिक स्वरूप पर भगवान ने बल दिया । लोक को नष्ट करने वाला अपने आप को नष्ट कर लेता है। अध्यक्ष पद से बोलते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के धर्म विज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. डॉ. आर.सी. पण्डा ने कहा - 'समाज के सभी वर्गों को धर्म और दर्शन जानना आवश्यक है क्योंकि उत्तम आध्यात्मिक सुख के अभाव में भौतिक सुखों की पूर्णता नहीं। दर्शन लक्ष्य के उपयोग को प्रतिपादित करता है। धर्म केवल धारण ही नहीं करता अपितु पुष्टि भी करता है। धर्म उत्तम सुख (मोक्ष) को धारण करता है। व्यक्ति को इस मार्ग से विचलित नहीं होने देता है। अतः धर्म का पालन सभी के लिए आवश्यक है। धर्म,कर्म का विनाशक है। धर्म से पुरुषार्थ को प्राप्त करना चाहिए। मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय धर्मविज्ञान संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो. कृष्णकांत शर्मा ने कहा - समन्वय की दृष्टि से कहा जा सकता है कि महावीर हों या कृष्ण या अन्य कोई मनीषी हो, उनके उपदेश, सिद्धांत उनके समय की तुलना में आज वर्तमान में ज्यादा प्रासंगिक है । अपरिग्रह, अहिंसा आज की ज्वलंत समस्याओं उग्रवाद, विषमता आदि का समाधान कर सकते हैं। परिग्रह हिंसा का कारण है। उपभोग से तृष्णा समाप्त नहीं हो सकती। तृष्णा का पार नहीं पाया जा सकता। इसका अंत नहीं हो सकता । तृष्णा पर अंकुश के अभाव में सह अस्तित्व की भावना जन्म नहीं ले सकती। हम दूसरे के बारे में सोच नहीं सकते। हिंसा को समझे बिना अहिंसा को समझा नहीं जा सकता। हिंसा, कृता , कारिता, अनुमोदित तीन तरह की होती है। मन, वचन और काय से हिंसा नहीं करना चाहिए। समन्वय से ही समाज का कल्याण संभव है। कार्यक्रम का आरम्भ पूज्य महाराज प्रशमरति विजय के मंगलाचरण से हुआ। विद्यापीठ की गतिविधियों पर प्रकाश विद्यापीठ के संयुक्त निदेशक (स्थापना) डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय ने डाला। संस्थान के निदेशक (शोध) प्रो. सुदर्शन लाल जैन ने अतिथियों का परिचय दिया एवं विषय पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन विद्यापीठ के शोध अध्येता डॉ. नवीन कुमार श्रीवास्तव और धन्यवाद ज्ञापन एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार सिंह ने किया। अर्हत् वचन, 24 (1), 2012

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102