Book Title: Arhat Vachan 2012 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 98
________________ श्रद्धांजलि श्री गणपतराय जैन का निधन स्व. श्री मिश्रीलालजी काला के पुत्र श्रीगणपतराय जी काला का आकस्मिक निधन 7 दिसम्बर 2011 को प्रातः 3.20 पर कोलकाता में हो गया। वे अपने 4 भाई 3 पुत्र एवं 2 पुत्रियों का भरापूरा परिवार छोड़ गये हैं। आपका जन्म 25.02.1941 को चाईबासा में हुआ था। ज्ञातव्य है कि काला परिवार मिश्रीलाल पदमावती जैन फाउण्डेशन के माध्यम से अनेक पारमार्थिक गतिविधियों को संचालित करता है। आप विद्या भारती समिति रांची, रोटरी क्लब चाईबासा तथा अन्य अनेक शिक्षण संस्थाओं से जुड़े थे। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुस्तकालय, इन्दौर को भी आपके द्वारा अनेक अवसरों पर उदात्त सहयोग प्राप्त हुआ है । वर्तमान में भी अनेक के माध्यमों से देश विविध धार्मिक/ सामाजिक गतिविधियाँ संचालित हो रही है | आप अत्यन्त सरल स्वभावी, मृदुभाषी, धर्म परायण व्यक्ति थे। कलकत्ता की जैन समाज ही नहीं अपितु समस्त समाजों में आप अत्यन्त लोकप्रिय थे। कुन्द कुन्द ज्ञानपीठ परीक्षा संस्थान की मंत्री श्रीमती विमला कासलीवाल आपकी छोटी बहन है। इस दुःखद प्रसंग पर 9 दिसम्बर 2011 को कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुस्तकालय में सायं 5.00 बजे दिवंगत आत्मा की मुक्ति एवं शोक संतप्त परिवार हेतु धैर्य की कामना की गई। राजेन्द्र कुमारजी सेठी का निधन 19 जून 1920 में जन्में श्री राजेन्द्र कुमारजी आत्मजश्री भंवरलाल जी सेठी, विनोदीराम बालचंद फर्म के मालिक, जिनके पुरखे 1920 में ही झालावाड़ पाटन से इंदौर आकर बस गये। सन् 1942 में आपने प्रो. बोरगांवकर के मार्गदर्शन में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. पूर्वार्ध किया व हिन्दी साहित्य समिति की गतिविधियों से जुड़े। व्यवसाय से वे प्रथम पंक्ति के उद्योगपति (विनोद स्टील्स व विनोद मिल्स) व कालोनाइजर्स ( सन 1949 में जावरा कम्पाउण्ड व बाद में अनूप नगर, कैलाश पार्क व शांति नगर के विकासकर्ता) के रूप में सदा याद किए जाएंगे। साहित्य, इतिहास, पुरातत्व व मुद्राशास्त्र के प्रति अध्ययन व अनुसंधान के प्रति उनकी सदैव गहन अभिरुचि रही व कई शोध पत्र उन्होंने न्यूमिस्मेटिक सोसायटी ऑफ इंडिया के जरनल वन्यूमिस्मेटिक क्रानिकल, न्यूमिस्मेटिक डाइजेस्ट, म.प्र. इतिहास परिषद के जरनल, प्राच्य प्रतिभा वन्यूमिस्मेटिक व सिंग्लियोग्राफी के जरनल में लिखे। सन् 1975 में 63 वें अखिल भारतीय अधिवेशन (न्यूमिस्मेटिक सोसायटी ऑफ इंडिया) लन्दन में उज्जैन के प्राचीन सिक्कों पर रोचक शोध पत्र पढ़ा। आप जीवन पर्यन्त एकेडमी ऑफ इंडिया न्यूमिस्मेटिक एण्ड सिंग्लियोग्राफी के अध्यक्ष रहे और कई वर्षों तक कार्यकारिणी के सदस्य भी। सन् 1974-75 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. एम.ए. दशानंद के निर्देशन में प्राचीन सिक्कों को ऐन्टीक्विटी एक्ट की परिधि से मुक्त कराने संबंधी त्रिसदस्यीय समिति के आप सक्रिय सदस्य नियुक्त किये गये व उनकी बौद्धिक कुशलता के परिणाम स्वरूप प्राचीन सिक्कों को पंजीकरण से मुक्त रखा गया। शोध कार्य हेतु आपने हांगकांग, बैंकाक, सिंगापुर, जकार्ता, बाली, पेरिस, जिनेवा, रोम व लन्दन की विदेश यात्राएं की। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ के संस्थापक अध्यक्ष काका सा. श्री देवकुमारसिंह कासलीवाल से उनके आत्मीय संबंध थे फलतः ज्ञानपीठ की गतिविधियों में भी उनका मार्गदर्शन एवं सहयोग रहता था। आपके निधन से बौद्धिक जगत को अपूरणीय क्षति हुई। हम उनके योगदान की सराहना व आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते है। कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि। अर्हत् वचन, 24 (1), 2012

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