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2. इसका हाइड्रोजन जोड़ / बंध, स्थिर वैद्युत शक्ति से बनता है तथा वह तापक्रम और दबाव से प्रभावित होता है ।
3. अपनी जालीनुमा संरचना के छिद्रों के अवरुद्ध होने से पानी अचित्त बन जाता है।
4. ये जीव मुख्यतः a) तापक्रम b) दबाव c) परकाय कोलोइड बनाने वाले ठोस पदार्थों से और d) ऑक्सीजन मूलकों से प्रभावित होते हैं।
ii) पानी को अचित्त बनाने की विधि में क्या किया जाता है ?
a) मूलकों को व ऑक्सीजन को हटाना b) पानी के शरीर / योनि की संरचना को तोड़ना c) शरीर के छिद्रों को बंद करना।
iii) अचित्त पानी के प्रमुख प्रभाव क्या है :
1. अचित्त पानी (मूलकों की अनुपस्थिति) से भावनाओं का निग्रह होता है । यानि इंद्रियों को वश में करने में आसानी होती है।
2. अन्य प्रभावों का जैसे चयापचय आदि का भी परीक्षण और शोध करना आसान हो सकेगा (अचित्त और सचित दोनों पानी को ) ।
3. पानी के जीवित रूप में होने की इस वैज्ञानिक खोज से यह जरूरी बनता है कि हम इन जीवों की रक्षा के लिए अधिक सजग बनें। अहिंसक समाज अपने उपयोग में पानी की मात्रा का निश्चित संकल्प के साथ अल्पीकरण करे तथा किसी भी प्रकार के दुरूपयोग को हटाने का प्रयास करें ।
4. जैन दर्शन के अनुसार इससे हमारा पर्यावरण तो बचेगा ही साथ-साथ में हमारे कर्मों की बड़ी निर्जरा भी होगी। यह अपनी आत्मा को, आत्मा द्वारा दिया जाने वाला एक बड़ा तोहफा होगा।
iv) आगे की शोध के लिए कुछ विषय :
1. ऑक्सीजन मूलकों की ऊर्जा, गति और सक्रियता का मापदंड
2. सचित्त पानी का मानव कोशिकाओं पर प्रयोग और मूलकों का प्रभाव अचित्त पानी की उपयोगिता ।
3. सचित्त पानी की कोशिकाओं की क्षमता पर शोध तथा उनके आभामण्डल पर शोध । 4. जल आधारित होम्यो दवाओं का अध्ययन और जल जीवन के आधार पर उनके सिद्धांतों को व्यवस्थित रूप देना ।
5. कास्मिक ऊर्जा का योगदान तथा होम्यो के संदर्भ में पानी की कार्य पद्धति पर शोध । आभार
श्रुतधर पंडित रत्न श्री प्रकाशमुनिजी द्वारा यथोचित जानकारी व संबंधित तथ्यों की प्रभावी व्याख्या और सरल शंका समाधान मिलता रहा। जिससे विषय पर तुलनात्मक समझ विकसित होती गई।
कई अन्य विद्वान आचार्य व साधुओं से विचार विमर्श द्वारा मार्गदर्शन मिलता रहा। जिनमें मुख्यतः आचार्य श्री हीरामुनिजी म.सा. के शिष्य तत्त्वज्ञ श्री प्रमोदमुनिजी म.सा., श्रुतधर श्री प्रकाशमुनिजी के शिष्य आगमज्ञ श्री लक्ष्मीचन्द म. सा. आचार्य श्री महाप्रज्ञजी व वैज्ञानिक संत पू. महेन्द्रमुनिजी म.सा., आचार्य श्री कनकनदीजी म.सा., आचार्य श्री नंदीघोष विजय जी म.सा. अध्यात्मयोगी श्री महेन्द्रसागरजी म.सा. आदि का पूर्ण सहयोग व उत्साहवर्धन रहा। इसके अलावा डॉ. कुलवंत सिंह, डॉ. हरेश्याम द्वारा कई उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त हुई ।
प्राप्तः 29.03.11
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अर्हत् वचन, 24 (1), 2012