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घुटने तक लटकती हुई वनमाला पहने हुए हैं, बाँयी तरफ कृष्ण भी घुटने तक वनमाला पहने हुए हैं, चतुर्भुज कृष्ण के हाथों में गदा, शंख एवं एक हाथ अभय मुद्रा में है । 10
विमलवसही की देवकुलिका संख्या 10 के वितान में बारहवीं शती ई. के कुछ दृश्य प्राप्त हुए हैं । इन दृश्यों के मध्य में कृष्ण व उनकी रानियों और नेमिनाथ को जलक्रीड़ा करते दिखाया गया है। जैन परम्परा में वर्णित है कि समुद्र विजय के अनुरोध पर कृष्ण नेमिनाथ को विवाह के लिए सहमत करने के उद्देश्य से जलक्रीड़ा के लिए ले गये थे। दूसरे वृतान्त में कृष्ण की आयुधशाला का दृश्य है जिसमें कृष्ण और नेमिनाथ के शक्ति परीक्षण के दृश्य हैं । कृष्ण बैठे हैं और नेमिनाथ उनके सम्मुख खड़े हैं यहाँ नेमी की दोनों भुजाएं अभिवादन की मुद्रा में उठी हैं, आगे के दृश्य में नेमिनाथ को गदा घुमाते हुए और कृष्ण को नेमिनाथ की भुजा झुकाने का असफल प्रयास करते हुए दिखाया गया है । इसी दृश्य में नेमिनाथ कृष्ण की भुजा एक हाथ से झुका रहे हैं। आगे के दृश्य में कृष्ण की भुजा झुकी हुई है तथा समीप ही कृष्ण के पांचजन्य शंख को नेमिनाथ बजा रहे हैं तथा उनके धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए नेमिनाथ का अंकन है। आगे के दृश्य में संभवतः बलराम व कृष्ण के मध्य वार्तालाप का अंकन है। तीसरे वृत्त में नेमिनाथ के विवाह का शिल्पांकन अत्यन्त प्रभावोत्पादक ढंग से किया गया है।
विमलवसहीं की देवकुलिका संख्या 29 के वितान पर मध्य में शक्तिशाली कालिया नाग को नमस्कार मुद्रा में दिखाया गया है । नाग के सिर के ऊपर कृष्ण अंकित है। कृष्ण अपनी भुजाओं से नाग को दबाये हुए हैं। नाग के पार्यों में तीन छोटे-छोटे अंकन हैं जो संभवतः नाग की पत्नियां हैं। सभी नागिनें संभवतः कृष्ण की पूजा अर्चना कर रही हैं कि कृष्ण कालिया नाग को छोड़ दे । वृत्त के दोनों तरफ उभरी आकृतियों को तीन भागों में बांटा गया है, सबसे नीचे की आकृति में कृष्ण घुमावदार शैय्या पर लेटे हैं और संभवतः, उनकी पत्नी पैर दबा रही है। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि जैन कलाकारों ने हिन्दू परम्परा में प्रचलित गाथा को अपनी कलाकृतियों में अंकित करने में संकोच नहीं किया ।11
लूणवसही से लगभग तेरहवीं शती ई. का अंकन ज्ञात होता है। दृश्य संख्या 12 में कृष्ण के जन्म को दिखाया गया है, मध्य में देवकी चारपाई पर लेटी हैं, परिचारिकाएं पास में खड़ी हैं, देवकी के कक्ष के सभी दरवाजें बंद हैं। कृष्ण के जन्म के समय कैदखाने का सिपाही चौकसी के साथ खड़ा है। 12
। नेमिनाथ के जीवन के लगभग 11वीं शती ई. के दृश्य कुंभारिया के महावीर मंदिर के दक्षिणी छोर पर भी देखे जा सकते हैं । पश्चिम की तरफ नेमि की माता शिवादेवी लेटी हैं और 14 स्वप्न अंकित है। उत्तर की तरफ शिवादेवी शिशु के साथ लेटी हैं, आगे नेमिनाथ के जन्म पर उनके अभिषेक का दृश्य है, पूर्व की तरफ नेमि को दो स्त्रियां स्नान करा रही हैं। इसी के आगे कृष्ण की आयुधशाला है, जिसमें कृष्ण के शंख, गदा, चक्र और खड्ग जैसे आयुध प्रदर्शित हैं। समीप ही नेमि कृष्ण का शंख बजा रहे है । 3 खजुराहों की समस्त जैन शिल्प सामग्री एवं स्थापत्यगत अवशेष दिगम्बर जैन सम्प्रदाय से सम्बन्धित है। यहाँ की मूर्तियां अधिकांशतः पीले रंग के बलुए पत्थर पर उत्कीर्ण हैं,
अर्हत् वचन, 24 (1), 2012