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कर्जन धारा नगरी आए तब उन्होंने यहां के अवशेषों और पुरातत्वीय खोजों के प्रति अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की। पुरातत्व संग्रहालय के प्रमुख धार रियासत के शिक्षा अधीक्षक श्री के. के. लेले बनाये गये । धार रियासत में संग्रहालय पुरातत्व विभाग की स्थापना के पश्चात पं. लेले के दोनों सहायकों श्री व्ही. के. लेले व मुंशी अब्दुल रहमान ने अनेक स्थलों एवं स्मारकों के सर्वेक्षण का कार्य सम्हाला । इसी तारतम्य में आनन्द हाई स्कूल में एक पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना की गई । उस समय इस संग्रहालय में हिन्दू व जैन कलाकृतियों के अलावा हिन्दू एवं मुस्लिम वास्तु विन्यास के प्रस्तर खंड, संस्कृत व पर्शियन के अभिलेख, सिक्के, पुस्तके तथा अन्य सामग्री को एकत्रित करके प्रदर्शित किया गया था। स्कूल में सुविधा जनक स्थान न मिलने के कारण कालान्तर में इसे स्थानांतरित कर दिया गया तथा पूर्णतः व्यवस्थित रूप से कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया। धार रियासत की पुरातत्वीय शोध की परम्परा को प्रो. ए. डब्ल्यू वाकणकर डॉ. हर्षन वाकणकर एवं आर.के. देव आदि ने बड़े उत्साह के साथ आगे बढ़ाया धार नगरी का पुरातत्व अत्यन्त प्राचीन है। ईस्वी सन् 1956-57 में डेक्कन कॉलेज (पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट) पूना के श्री ए. पी. खत्री को सर्वेक्षण के दौरान धार में ताम्राश्म युगीन सभ्यता के अवशेषों के साथ-साथ कुछ अत्यन्त सुन्दर चित्रित मृद भाण्ड भी प्राप्त हुए थे। वर्ष 1977 में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर को भी रोमन बुले और कुछ अन्य कुषाण कालीन अवशेष की प्राप्ति हुई ये सारी उपलब्धियाँ इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि धार की धरती के नीचे भी पुरातत्वीय वैभव भरा पड़ा है।
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संग्रहालय में पाषाण प्रतिमाओं का विशाल संग्रह है, जिनमें से दस अमिलिखित जैन प्रतिमाओं का विवरण प्रस्तुत लेख में किया जा रहा है
आदिनाथ प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की यह प्रतिमा धार से प्राप्त हुई है। पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में निर्मित है। अब केवल पादपीठ शेष है। पादपीठ पर तीर्थंकर आदिनाथ का ध्वज लांछन वृषभ (बैल) का अंकन है। पादपीठ पर विक्रम संवत् 1331 (ईस्वी सन् 1247) का चार पंक्तियों का लेख उत्कीर्ण हैं, जिसकी लिपि नागरी भाषा संस्कृत है। लेख में प्रतिष्ठा करने वाला श्रावक का नाम अंकित है तथा वह संवत् 1331 में प्रतिष्ठा कराकर इसे नित्य प्रणाम करता है।" लेख का पाठ इस प्रकार है -
सं. (संवत्) 1331 वर्षे..............
प्रणमति नित्य श्री ॥
पदमप्रभ - छठे तीर्थंकर पदमप्रभ की यह प्रतिमा धार से प्राप्त हुई है। (स.क्र. 719 ) पद्मासन मुद्रा में अंकित है। तीर्थंकर के सिर पर कुन्तलित केशराशि, लम्बे कर्ण चाप, वक्ष पर श्री वत्स चिन्ह है। पादपीठ अलंकृत है। संगमरमर पत्थर पर निर्मित 100 x 78 x 51 से. मी. आकार की प्रतिमा के पादपीठ पर लगभग 12वीं शती ईस्वी का एक पंक्ति का लेख उत्कीर्ण है, जिसकी लिपि नागरी भाषा संस्कृत है।' लेख में प्रतिमा पदमप्रभ तीर्थंकर की बताई गई है। लेख का पाठ इस प्रकार हैश्री पदमप्रभ देवः ॥
चन्द्रप्रभ - आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ की यह प्रतिमा धार से प्राप्त हुई है। ( स.क्र.84) पद्मासन की ध्यानस्थ मुद्रा में अंकित है। तीर्थंकर का वक्ष से ऊपर का भाग भग्न है। पादपीठ पर चन्द्रप्रभ का ध्वज लांछन अर्द्धचन्द्र का अंकन है। वेसाल्ट पत्थर पर निर्मित पर 40 x 60x27 सें.मी. आकार की प्रतिमा के पादपीठ पर लगभग 12वीं शती ईस्वी का एक पंक्ति का लेख उत्कीर्ण है,
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अर्हत् वचन, 24 (1), 2012