Book Title: Arhat Vachan 2012 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 45
________________ ___अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्ष - 24, अंक - 1, जनवरी-मार्च - 2012, 45-48 21वीं सदी में दिगम्बर जैन आचार्य परम्परा - अनुपम जैन* सारांश ईस्वी सन् 2011 के वर्षायोग में साधनारत ज्ञात समस्त दि. जैन आचार्यों की गुरुपरम्परा का संकलन कर दिगम्बरत्व के इतिहास के संरक्षण का एक लघु प्रयास इस आलेख में किया गया है। संभव है कि कुछ नाम छूट गये हो इन्हें समाहित कर पूर्ण सूची तैयार करने हेतु यह आलेख प्रस्तुत है। इतिहास साक्षी है कि भगवान ऋषभदेव से महावीर पर्यन्त 24 तीर्थंकरों की परम्परा के अनुयायी महान दिगम्बर जैनाचार्यों की प्रवृत्ति स्वयं को प्रतिस्थापित करने, संघ या परम्परा के प्रचार-प्रसार या इतिहास के सृजन में कभी नहीं रही। पारम्परिक ज्ञान के संरक्षण अथवा स्व- पर कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर आपने जिन ग्रंथों का सृजन किया उनको आगमों से निःसृत ज्ञान या पूर्वाचार्यों के ज्ञान पर आधारित लिखकर अपनी लघुता प्रदर्शित की। अहंकार का भाव लेशमात्र भी न रहा। अनेक ग्रंथों में तो प्रशस्तियाँ भी नहीं लिखी हैं | ग्रंथ में समकालीन सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक जीवन की झलक तो मिल जाती है किन्तु व्यक्तिगत जीवन, जन्मतिथि, जन्म स्थान, माता, पिता, परिवार, अन्य कृतियों, गुरु परम्परा के बारे में जानकारी शून्य रहती है। इससे अनेकशः काल एवं कृतित्व के निर्धारण में बहुत दिक्कत आती है। बीसवीं / इक्कीसवीं सदी ईसवी में दिगम्बर जैन परम्परा का इतिहास लिखने वालों को सही तथ्य मिल सके एवं इसका समीचीन इतिहास लिखा जा सके इस दृष्टि से मैंने सन् 2000 में तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ द्वारा दिगम्बर जैन साधुओं की वर्षायोग सूची का प्रकाशन किया था। 2000 में 818 साधु (मयूर पिच्छीधारी) साधनारत थे। 2001, 2002, 2003 तक यह क्रम विद्वत् महासंघ के माध्यम से चला किन्तु इसी के मध्य संस्कार सागर पत्रिका ने इस कार्य को रुचिपूर्वक, तत्परता सहित करना प्रारम्भ किया एवं मुझे लगा कि मेरी भावना की पूर्ति हो रही है तो संसाधनों को बचाने की दृष्टि से यह कार्य रोक दिया। 2000 से पूर्व के भी अनेक दशकों से जैनमित्र, जैन गजट, सम्यग्ज्ञान, आदित्य आदेश जैसी पत्रिकाएं उपलब्ध वर्षायोग सूची प्रकाशित करती रही किन्तु वे पूर्ण नहीं रहती थी। उनका उद्देश्य श्रावकों को जानकारी देना रहता था एवं इस उद्देश्य से पत्रिकायें आज भी जानकारी प्रकाशित करती हैं किन्तु वे इतिहास नहीं बन सकती। संस्कार सागर पत्रिका का कार्य प्रशंसनीय है। पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज द्वारा दीक्षित मुनि/ आर्यिकाओं / ऐलक / क्षुल्लक आदि की जितनी व्यवस्थित जानकारी इसमें आती है, वह आदर्श है किन्तु शेष परम्पराओं के बारे में संकलन अधिक व्यवस्थित नहीं है। मेरी तो भावना है कि वर्तमान शताब्दी में साधनारत सभी दि. जैन मुनि / आर्यिका संघों के बारे में इतनी ही व्यवस्थित जानकारी प्रकाशित * मानद सचिव, कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, 584, महात्मा गाँधी मार्ग, इन्दौर-452001

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