Book Title: Arhat Vachan 2012 01
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 29
________________ (जामनगर में गुजरात के वाटर सप्लाई और सिवरेज बोर्ड द्वारा जारी टेस्ट रिपोर्ट, 24 अप्रैल 2010) 4. बैंगलोर के स्कूलों में किये गये परीक्षणों में भी राख घुला पानी (कोलोइड), पूर्व के पानी से ज्यादा साफ और बेक्टीरिया विहीन पाया गया। ऐसा पानी पीने से शरीर में मूलकों की मात्रा कम हो जाती है। यानि यह डीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है। चूंकि यह क्षारीय जल होता है, इसलिए ऐसिडिटी की शिकायत (अम्लता) कम हो जाती है। अतः निथार और छानकर घर में ऐसा ही पानी पीने का इंतजाम करना चाहिए। इ) अहिंसक जीवन शैली और पर्यावरण संरक्षण : i) उपरोक्त आभामंडलीय फोटोग्राफी से यह पक्का सिद्ध हो गया है कि पानी सचित्त/अचित्त रूप में एक जलकायिक जीव है। आज हम इस स्थिति में हैं कि यंत्रों द्वारा यह पहचान सकते हैं कि कोई पानी सचित्त अवस्था में हैं या निर्जीव अवस्था में है। अतः विवेकशील मनुष्य का यह कर्तव्य बनता है कि उसके साथ सम्मान की दृष्टि रखें। हमारे अहिंसक जीवन दर्शन 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' का तकाजा है कि इसके जीवन की रक्षा करने का भाव रखकर, हम पर्यावरण संरक्षण में अपना सहयोग करें। जीव रक्षा का सीधा-साधा मतलब है कि हम अपने दैनिक जीवन में करुणा पूर्वक, पानी का दुरुपयोग नहीं होने दें। हर समय जागरूक रहकर इसके मितव्ययी बने । अपने विवेक द्वारा इसका अपव्यय बिल्कुल न होने दें । इसके अल्पीकरण के संकल्पों पर विशेष जागरूकता अभियान चलायें । ii) मितव्ययता: जैसे घी का उपयोग करते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि एक बूंद भी व्यर्थ नीचे नहीं गिरे या फालतू बहकर न चला जाय, वैसी ही मानसिकता जल की बूंद के प्रति भी समाज में विकसित की जाये । खासकर स्कूली बच्चों व कृषि तथा उद्योग में लगे व्यक्तियों को इसका महत्व विशेष प्रशिक्षण द्वारा समझाया जाये। iii) कुछ साधारण गुरः । 1. पानी से धोते वक्त (शरीर, बर्तन व वस्तुओं) बहते पानी के बजाय मग या हाथ के चुल्लु का उपयोग करें तथा प्रत्येक बार पानी की मात्रा कम से कम लें। 2. बहता पानी (जैसे सिंचाई आदि) नल या पाइप का व्यास (छोटे छेद वाला) कम से कम रखें तथा नल को भी कम से कम खोलें। फव्वारे या ड्रिप विधियों से खेती में बहुत पानी बचाया जा सकता है। 3. जल संरक्षण में पुनरूपयोग व्यवस्था का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे पर्यावरण संरक्षण में सहायता तो मिलेगी ही साथ ही साथ में निकट भविष्य में आनेवाली जल समस्या से भी निजात मिल सकेगी। जल है तो जीवन है। हमें गंभीरता से सोचना है कि अपकायिक जीवों के प्रति हम समाज में किस प्रकार करुणा का भाव पैदा कर सकें। नहीं तो हमारी उदासीनता या लापरवाही से कहीं आने वाली पीढ़ी ही पानी की कमी के कारण पृथ्वी से विलुप्त होने के कगार पर न आ जाये। फ) सारांश i) अभी तक की जानकारी या परिकल्पना के अनुसार - 1. जल जीव की संरचना एक जालीनुमा सूक्ष्म बेलनाकार नेनो ट्यूब के सदृश है। अर्हत् वचन, 24 (1), 2012 29

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