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[ ११ ] जाने के बाद चौरासीवें दिन ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास चैत्र के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विशाखा नक्षत्र में पूर्वाह्नकाल में उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि कल्पसूत्र में पार्श्वनाथ को कमठ द्वारा दिये गये उपसर्ग का कोई उल्लेख नहीं है । मात्र यह कहा गया है कि उन्होंने देव, मनुष्य और तिर्यञ्च संबंधी अनुलोम और प्रतिलोम सभी उपसर्गों को समभाव से सहन किया। कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्व के ८ गण तथा ८ गणधर हुए थे। उनके आठ गणधरों के नाम इस प्रकार हैं-(१) शुभ, (२) आर्यघोष, (३) वशिष्ठ, (४) ब्रह्मचारी, (५) सोम, (६) श्रीहरि, (७) वीरभद्र और (८) यश । किन्तु आवश्यक नियुक्ति में पार्श्व के १० गणधर थे ऐसा उल्लेख है। इसी प्रकार अभयदेव की स्थानांग वृत्ति में भी पार्श्व के १० गणधरों का उल्लेख है। इन दोनों में पार्श्व के गणधरों का नामोल्लेख नहीं है । कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्व के आर्य दिन प्रमुख १६००० श्रमण और पुष्प चूला प्रमुख ३८००० आर्यिकायें थीं। विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहां पार्श्व के प्रधान श्रमण आर्यदिन्न कहे गये हैं जबकि पार्श्व के ८ गणधरों में कहीं भी उनका .उल्लेख नहीं है। कल्पसूत्र में पार्श्व के सुव्रत प्रमुख एक लाख चौसठ हजार गहस्थ उपासक और सुनन्दा प्रमुख तीन लाख सत्ताइस हजार श्राविकाएं होने का भी उल्लेख है। पार्श्व ने अपने सामान्य जीवन के सत्तर वर्ष जन प्रतिबोध देते हुए व्यतीत किये और वर्षाऋतु के प्रथममास श्रावण शुक्ल अष्टमी को निर्वाण प्राप्त किया। पार्श्व के निर्वाण के १२३० वर्ष व्यतीत होने पर कल्पसूत्र लिखा गया । 4 1 ___ कल्पसूत्र में भी पार्श्व के सम्बन्ध में मात्र कुछ विस्तृत सूचनाएँ ही उपलब्ध होती हैं, उनका विस्तृत जीवनवृत्त नहीं मिलता है । श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थ आवश्यकनियुक्ति और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति इनकी अपेक्षा कुछ अधिक सूचनाएं प्रदान करते हैं किन्तु पार्श्व के जीवनवृत्त का उनमें भी अभाव है। पार्श्व का विस्तृत जीवनवृत्त को जानने का आधार मात्र ईसा की ८ वीं शताब्दी के पश्चात् लिखे गये चरित्रग्रन्थ ही हैं। पार्श्वनाथ के माता-पिता, वंश एवं कुल
समवायांग, कल्पसूत्र और आवश्यक नियुक्ति में पार्श्व के पिता का
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